कतेक आजाद भेल मिथिला आ कतेक आजाद भेलहुं हम सब?

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    दिल्ली-मिथिला मिररः देश सोमदिन अपन 66म गणतंत्र मनौलक दिल्लीक राजपथ पर जाहि तरहक दृश्य छलैक ओ नयनाभिराम करवाक लेल बहुत छल। भारतक स्वीकार्यरता वैश्विक स्तर पर कोन तरहें बढ़ल इहो केकरो बतेवाक आवश्यकता नहि बुझाना जा रहल अछि मुदा अहि गणतंत्र कें देखैत एकटा बात मोन कें कचोइट रहल अछि कि ‘कतेक आजाद भेल मिथिला आ कतेक आजाद भेलहुं हमरा सब?’ सब सं पहिने त पैछला बरख आ अहि बरख राजपथ पर बिहारक झांकी नहि निकालनाइ कतौ ने कतौ बिहारक वर्तमान ओ पूर्व मुख्यमंत्रीक संग-संग संपूर्ण सरकार आ ओहि सं जुड़ल समस्त अधिकारी लोकनिक विफलताक प्रतिक थिक, कारण जखन विश्वक सब सं समृद्ध व्यक्ति राजपथ पर बैसल छलाह तखन बिहार सरकार बुते अपन सभ्यता ओ संस्कृति कें प्रदर्शित करवाक कूबत नहि छल। खैर, ई कोनो पहिल बेर नहि छी आ एहन तरहक उपेक्षा मिथिला त बरखों-बरख सं उठावैत आबि रहल अछि। आब अहि सं पैघ अपमानक कि बात भ सकैत अछि कि ‘बिहारक राज्य गाण’ मे संपूर्ण मिथिला क्षेत्रक कोनो उल्लेख नहि अछि। मिथिला मिरर बेर-बेर अहि प्रश्न कें राजनीतिक स्तर सं लऽ समाजिक मंच पर तक उठवैत रहल अछि। मुदा अहि विषय पर हमरा सब कें लड़ाई लड़ब आवश्यक अछि कारण ई अप्पन हक आ अधिकारक लड़ाई थिक।
    आब देखी कि आजादीक बाद मिथिला कतेक आजाद भेल आ कतेक आजादी बांकी छैक एखनो। देशक आजादीक बाद सेहो बहुत रास आजादीक लेल देश मे लड़ाई चलैत रहल आ मसलन हल ई भेल जे बहुत रास नव, छोट ओ पैघ राज्यक नाम भारतक नक्शा पर सामने आयल मुदा आजादी सं पूर्व सं चलि आबि रहल मिथिला आंदोलन ओहिना कें ओहिना घुसकुनिया काटि रहल अछि। जाहि आंदोलनक नै त कोनो प्रतिवद्धता छैक आ नहि स्वंभू मैथिल समाज अहि बात कें मानवाक लेल तैयार छैथ कि मिथिलाक कोनो बेटा कें अहि आंदोलनक जिम्मेवारी सौंपल जाय। मिथिला आंदोलनक ई बड़ पैघ विडंबना रहल अछि कि तथाकथित समाज ओ कथित मिथिला, मैथिली केनिहार किछु व्यक्ति ओ संस्था अपना आप कें ‘एको हम द्वितीय नाश्तिः’क बाट पर लऽ जेवाक लेल सतत् कोशिश कैलनि आ ओहिक परिणाम अछि कि आई धैर मिथिला आंदोलनक ओ स्वरूप नहि देखवा मे आयल जेकर स्वप्न स्व. भोगेंद्र झा, स्व. ललित नारायण मिश्र सहित कतेको जनप्रिय नेता ओ अभियानी देखैत-देखैत अपन प्राण न्योछावर क देलैन। समय मे बदलावक बीज प्रस्फुटित भेल आंदोलनक नव धार देखवा मे आवय लागल मुदा एक बेर फेर ओहने स्वरूप देखवा मे आयल कि ‘कांकोड़ के खुजल छिट्टा मे समेटव’ आ दोसर शब्द मे कहि त ‘छौडा़ कैल कचहरी ओ छौडि़ पकाओल बड़ी’ अपना मे छिद्दी सन बातक लेल अहि तरहक कपार फोरव्वैल भेल जाहि बाद एक बेर फेर सं मिथिला आंदोलन ओहिठाम ठाढ़ देखना जा रहल अछि जाहिठाम पहिने छल। हां, अहि बीच मे ढ़ाई मास मे सात कोस हमसब चललौ अवश्य मुदा फेर ओ सात कोस ओतैहे जा कऽ रूकी गेल जतय सं ओ यात्राक प्रारंभ केने रही। 
    पलायनक दंश ओ उद्योगक संग-संग धूमिल होइत पहिचान
    आजादीक बाद अगर कोनो राज्य मे पलायनक समस्या बनल हैत आ ओहि मे सब सं अग्रणी नाम बिहार ओ बिहारक मिथिला क्षेत्रक अछि। एकटा सर्वेक मानी त पलायनक दंश झेल रहल मिथिलाक घीय-पुता करीब 60 प्रतिशत सं बेसीक संख्या मे मिथिला सं बाहर जीवन निर्वाह करवाक लेल विवश छैथ। एकरा विडंबना नहि कहि त आओर कि कहल जायत। दीर्घकाल सं सब तरहें समृद्ध रहितो मिथिलाक लोक आई अहि तरहें पलायनक शिकार भ चुकल छैथ जेकरा बाद ओ पलायन रूपी दावन मिथिलाक ओहि समस्त चीज ओ सरोकार कें ध्वस्त करवा मे लागल अछि जेकर दुहाई दऽ हमरा सब आई धैर अपना आप कें समृद्ध हेवाक बात कहैत छी। कागज पर कृषि प्रधान देशक अंतर्गत आवै वला मिथिला क्षेत्रक कृषक कहियो एतेक समृद्ध छलाह जे अहि मिथिला क्षेत्र मात्र सं पूरा देशक 40 प्रतिशत सं बेसी चीनीक आपूर्ति हमरा लोकैन्हि पूरा करैत छलौह। मुदा आई जौं हम सब अपन अतीत कें देखैत छी त ओ हक्कन कानैत आ दहो-बहो नोर बहावैत देखना जा रहल अछि। कल-कारखानाक बंद भेलाक बाद मिथिलाक लोक लग कोनो आर दोसर उपाय नहि बांचल छल। आधुनिक होइत जमाना आ बच्चाक नीक भविष्यक डर अहि तरहें आम मैथिलजन मे समा गेल छल कि हुनका लोकैन्हि कें अपन डीह-डाबर छोडि़ मगैहियाक जीवन बितेवाक लेल मजबूर होमय पड़लैन। मुदा दुःखक बात ई जे पलायन भेल कुल आवादीक 00-15 प्रतिशत मैथिलजन एहन कपूतक रूप नेने जा रहल छैथ जे ग्राह जेना अपन संस्कृति कें निगलने जाइत छैथ। ओ व्यक्ति लोकैन्हि मैथिल सभ्यता ओ संस्कृति कें स्वीकार करब त दूर अपना आप कें मैथिल कहेवा तक सं परहेज करैत देखवा मे आवैत छैथ। 
    नारीक शिक्षा ओ स्वीकार्यताक घोर अभाव
    मिथिला ओ मैथिल जाहि बात कें अपना माथक पाग सं जोडि़ कऽ देखैत छैथ ओ अछि मां जानकीक मिथिला मे जन्म आ ओहि सं संपूर्ण विश्व मिथिला कें नमन करैत अछि। मुदा पुरूष प्रधान भारत ओ मिथिला मे स्त्री कें सहज रूप सं स्वीकार केनाई कतौ ने कतौ पुरूषक मोछक छोट हैव जेका बुझना जाइत अछि आ पुरूष प्रधान समाज मे महिला माथ पर ‘पाग’ आवै ई कखनो तथाकथित मैथिल समाज नहि चाहता। जौ महिला आगु बढ़ती त समाज मे धोतीक ढेका फलका बैसल ओहि स्वंभू विद्वान लोकनिक पाथक पाग कतय जायत जेकर दुहाई ओ सब नइ जानी कतेको बरख सं दैत आबि रहला अछि। 21म सदीक विश्व मे सब आपना आप कें आओर बेसी आत्मनिर्भर बनेवाक दिस डेग बढ़ा रहल अछि त देसर दिस मैथिल समाज एखनो तक ओहि रूढ़ीवादी परंपरा कें जीज्जीर मे बान्हल नजैर आबि रहल अछि। स्वयं पुरूष भ सब किछु करवाक आजादी आओर स्त्री कें आगु बढ़ेवा मे माथक पाग कें हनन हैव मैथिलजनक स्वभाव जेना बनि गेल अछि। एखनो तक मैथिलजन कें अहि बातक मात्र प्रमाण पत्र चाहियैन कि स्त्री मात्र पार्दा मे झांपल रहै, नीक निकूत भोजन बना क दैत रहैन आ छीट्टा भैर बच्चा जनमेवा मे तथाकथित पुरूष ओ मोछ बला सब कें संग दैत रहैन। समाजक ओ तथाकथित व्यक्ति जे स्वयं दिनक प्रकाश ओ रातुक अन्हरयिा मे सब किछु करैत छैथ ओ लोकैन्हि आजुक वर्तमान युगी बेटीक कम कपड़ा पर सवाल उठावैत सहज रूप सं नजैर आबि जाइत छैथ। बात कम कपड़ाक नहि, सोचक होइत छैक। समय द्रुत गति सं अपना आप के आगु बढ़ेवाक लेल अग्रसर अछि अहि मे पुरूष प्रधान अहि समाज कें चाहि कि ओ सब साड़ी आ स्लीवलेस दुनू कें स्वीकार करैथ। 
    शिक्षा ओ स्वच्छताक घोर दिक्कत
    संपूर्ण मिथिलाक लेल नारीक संग-संग पुरूषक शिक्षा ओ स्वच्छता खास कऽ शौचक बड़ पैध समस्या देखल जाइत अछि। अहि दुनु समस्या सं हर क्षण, हर पल आम स्त्री तिल-तिल मरैत रहैत छैथ। मुदा एकरा निवारण हेतु कोनो ठोस कार्य नहि भ रहल अछि जे निश्चित रूपहिं समाजक लेल अभिषाप सं कम नहि अछि। ओम्हर समाज मे शिक्षाक कमीक कारणे अखनो बेटी लोक कें बोझे टा लगैत छैन्हि आ जल्द सं जल्द ओकरा विवाह करा अपना खुट्टा सं भगेवाक कोशिश मे माय बाप लागल रहैत छैथ। बेटाक परिवरिश मे सर्वश्व न्योछावर भ जाय त ओ हर्ष आ शानक बात मुदा बेटीक प्रति अगर एक छिद्दी खर्च करवाक बेर हो त ओहि काल मे हाथ-पैर कठुआय लागैत छैन्हि। समाज मे जा धैर बेटीक प्रति मैथिलजनक सोच मे परिवर्तन नहि हैत ता धैर हमरा सब एकटा स्वस्थ्य ओ शिक्षित समाजक परिकल्पना नहि क सकैत छी। जरूरत छैक बेटी आ बेटा मे अंतरक त्यजन कऽ समाज कें एकटा नव बाट देखेवाक जाहि ठाम सं हमहुं सब विंग कमांडर नेहा ठाकुर, स्मृति झा, कल्पना चावला, किरन बेदी, लता मंगेशकर, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, दीपिका कुमारी, पीटी उषा, इंदिरा गांधी, सरोजनी नायडू, एम सी मेरिकाॅम, बबिता कुमारी, मदर टरेसा, सुनीता विलियम्स सहित असंख्य बेटीक बाप-माय बैन अपना संग-संग गांव, समाज ओ देश कें सेहो गर्व करवाक अवसर दी। जौं हमरा सब आजादी वास्तव मे चाहैत छी त सब सं पहिने स्वयं सं लड़ाई लड़य पड़त कारण जा धैर समाज मे पसरल लकवा ग्रस्त सोच कें नहि त्यजन करब ता धैर हमसब अहिना पाछुये रहब आ दुनिया अपना गति सं आगु बढ़ैत जेतै। आऊ संकल्प ली शिक्षा ओ स्वच्छता सं दू-चारि हाथ करवाक। आऊ संकल्प ली कि स्त्री कें घोघ आ बच्चा पैदा करवाक मशीनक अभिषाप सं बाहर आनब। आऊ संकल्प ली आधा आबादी कें ओकर समुचित हक दियेवा लेल अवाज बुलंद करब। आऊ संकल्प ली ओहि लकवा ग्रस्त सोच बला कें समाज मे ओकर समुचित स्थान देखा स्वस्थ्य, समृद्ध ओ आजाद मिथिला बनेवाक। जखन नारी कें भेटत उचित सम्मान, चहु दिस हंसि उठत मिथिलाक हर आंगन कुटी आओर दलान। वंदे मारतम्, वंदे मिथिला।