पिरिकिया सं गुजिया तक, विलुप्त होइत मैथिलित्व, गर्म होइत बजार

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    दिल्ली-मिथिला मिररः जीवन मे व्यक्ति अपन पहिचान, संस्कार ओ संस्कृति बचेवा लेल नानान तरहक कार्य करैत अछि। जखन पहिचान लोकक आन, बाण ओ शान आ कि प्रतिष्ठाक विषय बनि जाइत छैक त मनुख ओकरा संवर्धन हेतु युद्ध तक लड़वा सं पाछु नहि हटैत अछि मुदा जौं समाजक आंखि सोझा कोनो चीजक अकाल मृत्यु होइत रहै आ समाज ओहि दिस ध्यान नै दै त ओकरा कि कहि सकैत छी? आई मिथिला मिरर एकटा एहने विषय पर अहां लोकनिक आंखि खोलय जा रहल अछि आ निश्चित रूपहिं ई एकटा चेतनाक विषय भ सकैत अछि मैथिलजनक लेल कि कोना हमरा सब अपन धरोहर कें अकाल मृत्यु हेवा लेल छोइर रहल अछि आ ओहि धरोहर कें कियो आओर नव नाम सं बजार मे आनि एकटा नव पहिचान द ओकरा स्थापित करेवा मे सफल भ जाइत अछि।

    जी हां, आई हम बात क रहल छी पिरिकिया अर्थात पुरूकिया’क। मिथिलाक घर आंगन मे ई नाम कोनो परिचयक बाट नहि ताकि रहल अछि अस्तु विवाह, दुरागमन सं लय कतेको शुभ कार्य मे भार-दौर सठवा मे एकर अहम स्थान रहैत छैक। एकटा एहन मिठाई जेकर जन्म मिथिला मे भेल आ ई सनेश समस्त मिथिलाक घर-घर मे अपन समुचित स्थान बनेवा मे पूर्णरूपेण सफल रहल। मुदा खांटी मिथिलाक अहि मिठाई कें जौं दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई ओ कि बिहारक राजधानी पटनाक कोनो मिठाई दोकान पर खोजब त ओ सहज रूप सं भेट जायत मुदा ओ पुरूकियाक नाम सं नहि अपितु ‘गुजिया’क नाम सं।
    पिरिकिया सं गुजिया कोना?
    एकटा कहाबत मिथिला मे आम छै कि बाडि़क पटुआ तीत! दैनिक भाग-दौड़क अहि जमान मे लोक दोसराक नीक ओ अधलाह देखवाक त कोशिश करैत अछि मुदा अपन कोन नीक चीज छै आ ओकर कोन महत्व छैक अहि बात पर विचार केनाई बिसैर जाइत अछि। पुरूकियाक संग सेहो इहै भेलैक, मैथिल बस एकरा अपन घर ओ पावनि-तिहार पर बनैवला मिठाई बुझी एकरा अपने तक सिमैट क राखि लेलनि मुदा पुरूकियाक कि महता छलै ओकरा पर विचार करब कोनो उचितगर बात आम मैथिल कें नहि बुझेलनि।
    एहन मे जे अहि वस्तुकें नीक जेना आ निकट आबि देखलक ओ एकर असली पहिचान कें बुझवा मे बेसी विलंब नहि केलक आ झट सं मिथिलाक पिरिकिया कें अपन एकटा नव नाम दैत ओकरा गुजिया बना देलक। आई कें तारीख मे जौं कोनो आम मैथिल कें अहि बातक जानकारी देव कि ई मिठाई मिथिलाक छी त ओ एक बेर नंिह अनेको बेर अहांक मुंह दिस ताकत आ अंत मे अहि मिठाई कें मिथिला छोरि गुजरात, बंगाल, महाराष्ट्र इत्यादिक नाम संग जोडि़ देत।
    मार्केटिंग ओ प्रचारित करवा मे विफल
    ई दशा सिर्फ पिरूकियेटाक नहि अपितु मिथिलाक बहुतो एहन वस्तु ओ चीजक अछि जे मिथिला सं जन्म लेलाक बादो आई कोनो आन शहरक नाम ओ परिचय आ जानल जा रहल अछि। हमरा सब अदौकाल सं अपन पहिचान कें नुका क रखवा मे विश्वास रखलौह, ओकरे ई परिणाम थिक जे हमर अपन खांटि माटि-पाइन सं जुड़ल चीज हमरा सबहक आंखिक सोंझा आई कोनो नव रूप ओ नव नाम सं हमरे लोकनिक आंखिक सामने आबि रहल अछि। जौं हमरा सब अपन धरोहर कें चिन्हित क ओकरा सम्रग बजार मे लोकक सामने लायब त निश्चित रूपहिं अपन धरोहर अपने लग रहत ओ विश्व सेहो ओकरा मैथिलक धरोहर ओ मिथिलाक माटि-पाइन सं जुड़ल मानय लागत। मुदा आपसी कुक्कुर कटौज सं जखन फुरसैत होइ तखन ने कोनो आम मैथिल अहि दिस ध्यान देताह।
    कोना हैत धरोहरक संवर्धन?
    डिजीटल युग मे कोनो चीज कें प्रचारित करब आब ओतेक भीरहगर नहि रहि गेलैक जतेक कि दू दशक पूर्व छल। आब ओ समय आबि गेल छैक जखन हमरा लोकैन्हि बेसी सं बेसी संख्या मे अपन धरोहर कें लय दुनियांक सोंझा मे आबि आ ओकरा आम लोकक बीच राखैत प्रखरता सं बल दय कहि जे ई हमर धरोहर अछि आ एकर पहिचान हमरे लोकैन्हि सं जुड़ल छैक। भारत, नेपाल संिहत विश्वक केानो कोण मे जतय मैथिलजन छैथ ओहिठाम मैथिलक धरोहर कें लोक तक पहुंचा रोजगारक सृजन सेहो क सकैत छैथ आ ओहि सं मिथिला, मैथिलीक समुचित प्रचार प्रसार सेहो भ जायत। आब ओ समय आबि गेल छैक कि हमरा सब देश, विदेश मे जतय कोनो तरहक प्रदर्शनी होइ ओहि मे अपन समस्त धरोहर कें ल जा ओकरा विश्व सोंझा प्रचारित करी।
    पिरिकयाक रंग रूप समयक संग मिथिलो मे बदलैत रहलै मुदा ओकर नाम मे जे परिवर्तन भेलै ओकर भरपाई शायदे कियो क सकैत अछि। स्थिति एहन छैक जे एखन होलीक अवसर पर देश मे सब सं बेसी बिकाईवला मिठाई मे पिरिकिया अग्रणी अछि मुदा ओ गुजियाक नाम सं नहि कि पुरूकियाक नाम सं। जौं आबो आम मैथिल अपन धरोहरक संवर्धनक लेल नहि जागृत हेताह त अहिना पिरिकियाक बाद फेर कोनो आम मिथिला, मैथिली सं जुड़ल वस्तु कोनो नव नाम सं बजार मे अपन पहिचान बनावैत रहत आ आम मैथिल ओहि दिस बस टुकुर-टुकुर ताकैत रहताह।