बीत-बीत पर लक्ष्मण रेखा, डेग-डेग पर आडि़

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    दिल्ली,मिथिला मिररः अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अर्थात 8 माचर्, सोशल मीडिया सं आम मीडिया ओ संसारक प्रत्येक व्यक्ति जाहि तरहें भ सकल आम महिलाक प्रति अपन अभिव्यक्ति व्यक्त कैलनि। सोशल मीडिया पर बहुत रास कथित समाजसेवी अपन पोस्टर ओ फोटो सेहो चमकाबैत नजैर ऐलाह। मुदा कनी सोचू, कि 365 दिन मे सं बस एक दिन संसारक श्रृष्टिकारिणीक लेल बनल अछि? हमरा जनतबे प्रेम समर्पण ओ श्रद्धाक लेल नहि त कोनो दिन दिवसक आवश्यकता होइछ आ नै कोनो समय।

    कि एक दिन केकरो घी मलिद्दा खुआबि आ सालक प्रत्येक दिन ओकरा शोनितक नोर बहेवा लेल मजबूर कय दी, आखिर समाज मे ई कोन प्रचलन? आई दुनियां चांद ओ मंगल तक पहुंचवा मे सफलता पाबि चुकल अछि मुदा हम मैथिल कथित रूप सं किछु रूढ़ीवादिताक कारणें अखनो उतैहे बैसल छी जतय कि एक शताब्दी पहिने बैसल रही। कि सोशल मीडिया ओ समाचार पत्र ओ समाचार चैनल मे बैस एक दिन नम्हर-नम्हर भाषणवाजी केलाह सं महिला कें उचित स्थान भेंट जेतैन्हि?
    कि हमर मैथिल समाज जाहि तरहक रूढि़वादी परंपरा सं जकड़ल अछि ओहि सं महिला सम्मानति भ जेतिह? जखन समय ऐलैह तखन सीता सेहो चंडीरूप धारण केने छलीह आ हुनकर ओ रूप देखि स्वयं नारायण सेहो अचंभित भेल छलाह। मुदा मैथिल समाज एखनो धैर अपना घरक सीता कें नहि चिन्ह रहलाह अछि। एकरा विडंबना कहि आ मिथिलाक लेल दुर्दिन, आधा आबादीक मालिक कें हमर समाज रोने-बोने अपन नोर बहेवाक लेल विवश क रहल छैथ।
    बेटी कें जन्म लेवा सं पूर्व कोइखे मे माइर देनाइ, दहेजक लोभ मे मुतौह कें फसरी लगा ओ कि मटिया तेल छीट डाहवाक बात आम अछि। सासुर मे कथित लोभी साउस, ससुर ओ परिवार द्वारा एकटा मासूम कें प्रतारित क ओकरा आत्महत्या करवाक लेल विवश केनाई। युवती ओ महिलाक संग सामुहिक ओ दुष्कर्मक जे घटना समाज मे दिन प्रतिदनि देखवा मे भेंट रहल अछि ओहन मे एक दिनक सम्मान पावि महिलाक हृदय कोना उत्साहित हैत?
    समय आबि गेल छैक जखन पुरष ओ महिला मे कोनो भेद नहि राखि जीवनक पटरी पर एक दोसराक संग दौड़ अपन, परिवार ओ समाजक पाथ पाग कें आओर बेसी ऊंच कैल जाय। मात्र पर्दा मे राखि आ खुटेसल बड़द बना समाजकें कखनो आईना नहि देखाओल जा सकैत अछि। आब समय बदलि रहल छैक आ जा धैर महिला लोकैन्हि कें स्वतंत्र आ आत्मनिर्भर बनवाक लेल प्रोत्साहित नहि कैल जायत ता धैर हुनका लोकनिक लेल एकदिनक महिला दिवसक कोनो औचित्य नहि।
    कम सं कम महिला मे एखन जे जरूरत छैक ओ छै जे कथित रूप सं लकवाग्रस्त सोच राखैवला पुरूषक बहिष्कार ओ आपना घरक लक्ष्मीकें स्वयं अपन आंगुर पकैड़ ओकरा बाहर जेवाक लेल प्रेरित केनाई। जा धैर मथिला ओ देश मे महिलाकें बच्चा जनमेवाक मशीन ओ पर्दाक भीतर जीवन जीवाक लेल विवश कैल जायत ता धैर बस महिला इहै कहैत नोर बहबैत रहति कि आगि लागौ बरू बज्र खसौ धसना धसौ आ कि फाटौ धरती मां मिथिला रहि क कि करती? बाबा नागार्जुनक ई पाति त दोसर दिस वर्तमान मे स्त्रीक दशा कें वर्णित करैत मिथिलाक प्रख्यात गीतकार, संगीतकार, आलोचल ओ पत्रकार धिरेंद्र प्रेमर्षी अपन रचना मे किछु एहन तरहक भाव व्यक्त करैत छैथ बीत-बीत पर लक्ष्मण रेखा, डेग-डेग पर आडि़, केहन विधना लिखल विधाता सगरे गाडि़ये माइर। अक्खज भ जीवैत अछि नारि, अपना कें अपनहि परताडि़।
    आउ सोच बदलू तखने हमरा सब समाज ओ देश बदलवाक स्वप्न कें साकार क सकैत छी अन्यथा मिथिला अहिना पिछड़ल कें पिछड़ले रहत जेकरा देखैयवला कियो नहि भ सकैत अछि। हां एक दिनक राजे आ एक दिनक भोजे केकरो किछु नै होइ छै। जौं हमरा सब महिला कें सम्मान देवय चाहैत छी त हमरा सब कें नारी शक्ति कें सम्मान करय पड़त।