गे माय कि तोरो सं प्रेम करवाक लेल हमरा कोनो दिन चाही?

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    दिल्ली-मिथिला मिररः मिथिलाक सिद्धहस्त चेहरा धीरेन्द्र प्रेमर्षी  मायक स्नेहक बारे मे लिखैत छैथ। ‘हमरो जौं माय रहितै, कहितै बौआ। बोगली मे रूनुन-झुनुर बजितै ढौआ। माथ सोहरावैत ओ बेना डोलैवतै, आ पैवति हमहुं दुलार यौ। मोन होइयै जे पैवति दुलार यौ, मोन होइयै जे पैवति दुलार यौ।’ 10 मई अर्थात विश्व मातृ दिवस। जौं आम भाषा मे कही त अपन माय कें स्नेह करवाक दिन। 21म सदी मे शिक्षा सं लय व्यक्तित्व तक कें बाजारीकरण बाद आब मायक स्नेह कें सेहो बाजारीकरण करवाक पूर्ण कोशिश शनैः-शनैः देखना जाय लागल अछि। अहि बेर 10 मई क जे देखल सोशल मीडिया पर ओकरा बाद बहुत रास प्रश्न स्वतः ठाढ़ हैव स्वभाविक अछि। 10 मई क समस्त सोशल मीडिया पर लोक अपन मायक तस्वीर दैत अपन मायक प्रति कोटि-कोटि प्रेम अपर्ण करवाक कोनो टा प्रयास नहि छोड़लाह। युवा मे विलुप्त होइत अपन संस्कृतिक महत्व आ पाश्चात्य सभ्यताक प्रवेश कतौ ने कतौ भविष्यक लेल एकटा पैघ चारित्रिक महामारी पसरवाक स्पष्ट संकेत द रहल अछि।

    कने सोचू। गर्भ धारण केलाक बाद दुनियाक समस्त माय कोना क 9 मास दर्द आ वेदना सहि हमरा लोकैन्हि कें अहि पृथ्वीक दर्शन करौने हेतीह। कतेक कष्ट भेल हेतैन आ होइत हेतैन्ह ओहि समय मे जखन ओ हमरा लोकनिक लालन-पालनक लेल अपन सर्वस्व न्योछावर क दिनक चैन, रातुक निन त्यागि, हमरा लोकैन्ह कें डेगे-डेगे चलब सिखेने हेतीह। की ओ माय हमरा लोकनिक परवरिश करवाक लेल कोनो दिन, महिना, घंटा ओ मिनट देखने हेतीह? नै, कदापी नै! ओ हर क्षण, हर पल हमरा लोकनिक लेल अपन प्राण तक देवाक लेल तैयार रहैत छलीह आ एखनो धरि रहैत छैथ। चाहे हुनकर स्वास्थ्य जेहन होइन।
    ओ जाहि कोनो परिस्थिति मे आ जतय कतौह हेतीह, अपन नेन्ना लेल हुनका आंखि सं सदिखन दहो-बहो नोर अवश्ये टा बहैत हेतैन। अपन छाती कें टुकड़ा कें एक नजैर देखवाक लेल हुनकर पथरायल आंखि, हाथक घोकचल चमड़ी, कपकपाइत आंगुर, थरथराइत पैर, मुदा तइयो हृदय मे ओहने मातृत्वक प्रेम। पूत चाहे केहनो हो, अपना मायक संग ओ कतबो अर्मयादित व्यवहार कियैक नहि केने हो मुदा मायक मोन मे अपना संतानक लेल कखनो कोनो राग, द्वेष नहि भेटत। कखनो मोन जड़लो पर जे कुमोन सं कोनो शब्द निकलैत अछि त ओहो श्राप नहि अपितु स्नेहेके एकटा रूप रहैत छैक।
    कि माय हमरा सब कें दूध पियेवाक लेल कोनो विशेष दिन केर प्रतिक्षा केलीह, कि माय हमरा सबहक भुखायल पेट भरवाक लेल कोनो समय विशेष मे बैसल रहलीह। अगर माय हमरा लेल अपन सुख तक न्योछावर क देलीह त हम सब एतेक बेसी ज्ञानी बनि गेलौह जे मायक प्रति ममता आ स्नेह करवाक लेल हमरा सब कें कोनो एकटा विशेष दिनक आवश्यकता पडि़ गेल? कि अपना माय कें दुलार करवाक लेल आब हमरा सब लग समयक कमी भ गेल आ कि हम सब बाजारवाद सं एतेक बेसी ग्रसित भ गेलौह जाहि मे हमरा सब कें माय कें स्नेह करवाक सेहो पब्लिसिटी करय पडि़ रहल अछि।
    कने सोचू जौं माय हमरा लोकैन्हि कें जन्म देवाक सं लय लालन-पालन तक समय आ दिन कें देखने रहितैथ त हमरा लोकनिक कि असितित्व रहैत? हम सब कतय आ कोन हाल मे रहितौ। कि साल 364-65 दिन अहां माय कें मारू पिटू, गाइर दियौन आ विश्व मातृ दिवसक दिन अपन मायक सब सं सुंनर फोटो कें सोशल मीडिया मे द अपना माय प्रति आभार व्यक्त करैत रहू। सोशल मीडिया पर किछु गोटे बिल्कुल सहि लिखने छलाह कि जतेक स्नेह मायक लेल अहि बेर सोशल मीडिया पर देखल जा रहल अछि जौं वास्तविकता में एकर आधो भ जाइत त देखक कतेको वृद्धा आश्रम बंद भ जायत।
    एकरा विडंबना कहि सकैत छी जे देशक जे व्यक्ति जतेक पैघ अपना आप कें बुझैत छथि हुनका लेल माय-बापक वास्ते प्रेम करवाक समय नहि भेटैत छैन्हि। वृद्धावस्था मे मायकें अपना संग रखनाइ हुनका लेल कतौ ने कतौ प्रतिष्ठा कें हनन बुझाइत छैन्हि। आ एकरे ई परिणाम देखल जाइत अछि कि ओहि कथित पैघ लोकक माय वृद्धाश्रम मे पड़ल भेटैत छैथ। कि ओ व्यक्ति ई कखनो नहि सोचैत हेतैथ जे हमहुं कहियो ओहि अवस्था मे जायब जाहि मे एखन हमर माय-बाप छैथ। हमरो संग ओहने व्यवहार हमर बच्चा क सकैत अछि। या फेर अपन जवानीक मदमस्तता मे चूर ओ व्यक्ति लोकनि वास्तविकता कें ठेंगा देखवाक कार्य करैत छैथ।
    काल चक्र अपना अक्ष पर सतत् घुमैत रहैत अछि आ कालक ओहि चक्की मे सब कियो पिसाओल अछि, चाहे ओ राजा, रंक ओ फकीर कियैक नहि हो। बाजारवाद आ 21म सदीक आपा धापी मे ओंघायल ओहि समस्त व्यक्ति लेल ई एकटा संकेत मात्र अछि कि कम सं कम अपन मायक प्रेम कें बाजारीकरण नहि करू। सोशल मीडिया सं इतर अपना माय-बाप कें चरण मे कने काल बिताउ, विश्वास करू अहां जीवनक ओ सब सं सुख चैन सं भरल दिन ओ समय हैत। जौं अहि सोशल मीडिया मात्र पर माय कें स्नेह करब त अहांक संग अहांक बाल बच्चा कोन तरहें व्यवहार करत। कने सोचू?
    अंत मे विश्वक समस्त माय कें मिथिला मिरर नमन करैत मिथिलाक स्थापित गीतकार, गायक ओ साहित्यविद् डाॅ. चंद्रमणिक कलम सं मायक लेल निकलल दू शब्द अपने लोकनिक लेल राखि रहल छी। ‘तोरा हाथक गरम सोहारी हमरा मीठ लागैयै, माय गे नहि चाहि तरकारी छुच्छे मीठ लागैयै। माय गे नै चाही तरकारी हमरा मीठ लागैयै।’