“शिक्षार्थी एवं शिक्षक” शिक्षा संस्कारक सर्वोत्तम पूँजी

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    सर्वप्रथम माँ शारदा क वंदना करैत किछु विचार प्रस्तुत करबाक निवेदन प्रार्थनीय अछि –

    शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीम्,
    वीणा पुस्तक धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।।
    हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां,
    वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ।।

    शिक्षा जीवनक निर्माण क श्रेष्ठ कला थिक । शिक्षाक अनुशीलन सँ व्यक्तिक तेज एवं तेजोदीप्त संस्कार प्रस्फुटित होइत अछि । शिक्षाक आश्रय सँ नकारात्मक सोच पराजित होइत अछि एवं साकारात्मक चिंतन, आत्मिक उत्थान कें प्रखरता प्रदान करैत अछि । वर्त्तमान समय मे शिक्षा प्रदान करबाक एवं ग्रहण करबाक स्थितिक कल्पना सँ भयभीत होमय पड़ैत अछि । शिक्षाक मुख्य उद्वेश्य व्यवसायिक सफलता प्राप्तिक आधार बनि चुकल अछि । चरित्र निर्माण, नैतिक साधन सँ सम्पन्न संचित संस्कार एवं करुणाभावक संजीवनी मात्र पुस्तक मे लिखित लेख सँ आगू नञि बढ़ि रहल अछि । रुचिक अनुसार शिक्षक एवं छात्र शिक्षाक परिभाषा सुविधानुसार नियोजित करैत छथि । विद्या ग्रहण करबाक मंदिर क पवित्रता कें नष्ट करबा मे शिक्षक एवं शिक्षार्थी समान रुप सँ दोषी छथि ।

    प्राचीन भारतीय परंपरा मे तपस्वी, आदर्श, अपरिग्रही एवं ऋषि स्तरक अध्यापक होइत छलाह तहिना अनुशासित, सेवाभाव सँ उन्मुक्त एवं स्वध्यायशील छात्र सेहो होइत छलाह । ओहि समयक अध्यापक, स्वयं संचित ज्ञान भंडार कें उदारतापूर्वक शिष्य कें शिक्षा प्रदान कय स्वयं कें गौरवान्वित अनुभव करैत छलाह । ‘विद्या ददाति विनयम्’क शूत्र प्रखरताक पराकाष्ठा पर छल । शिक्षाक परिष्कृत स्वरुप विद्या थिक एवं विद्या प्राप्त करबाक लक्ष्य सत्यक अन्वेषण करब होइत छल । परन्तु वर्त्तमान समय मे स्थिति भयावह अछि ।

    विश्वामित्र सदृश आचारवान आओर तपस्वी गुरु एवं राम- लक्ष्मण सदृश विनयी अध्यवसाय सम्पन्न सुपात्र शिष्य परंपराक अनुपालन सँ शिक्षा एवं विद्याक सार्थकता लेखनी द्वारा संभव नहि भs सकैत अछि । जावत् धरि शिक्षक स्वयं अध्ययनशील, त्यागी आओर अपरिग्रही नहि बनता, तावत् धरि शिक्षार्थी योग्य, अनुशासनप्रिय एवं देशभक्त नहि बनि सकैत छथि । व्यक्ति राष्ट्रक श्रेष्ठ पूँजी होइत छथि । श्रेष्ठ व्यक्तिक भव्य आचार एवं संस्कार सँ परिवारक विकास, समाजक विकास एवं राष्ट्रक विकास संभव भs सकैछ । एहि हेतु निवेदन अछि जे बच्चा कें श्रेष्ठ कर्त्तव्य- धर्मक शिक्षा प्रदान करबा मे रंचमात्रहूँ संकोच नञि कय परिवार, समाज एवं राष्ट्रक सजग प्रहरी बनि राष्ट्रीय मर्यादा कें मर्यादित करबाक संकल्प सँ संकल्पित हेबाक उत्तम कार्य सम्पादित कs भारतीय संस्कृति कें भव्यता प्रदान करी । जय श्री हरि ।

    राजकुमार झा ।