युवा लेखक मनीष झा द्वारा लिखन इ आंदोलनी कविता

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    लाठी ओ कतबहु तेल पिया लए
    हम – सब छि पाषाण सामान
    अडिग , लक्ष्य लेल रहबै सदिखन
    सुनि ले !..
    हक़ चाही नहि चाही दान ।।

    नहि दे हमरा राज्य बसए लेल
    चाही मुदा निज भाषा केर मान
    हे ! कृष्णक जुनि प्रस्ताव ठोकराबै
    सुनि ले !..
    नहि त’ अर्जुन लेतौ दुर्योधनक प्राण !

    तोरा कि होए छौ हम छि असबल
    मिथिला-रज भाल सुशोभित अछि मान
    आ जँ नहि विश्वास हेतौ हमरा पर
    सुनि ले !..
    त’ पक्किया हेथुन विधाता बाम !

    रौ हम चुप छी त’ मोन बढ़ए छौ
    तू एहिना करमें हमर अपमान ?
    सुनै छेँ ! हमरा जँ छूमें जरि जेमें तू
    सुनि ले !..