दरभंगा,मिथिला मिरर-अमलेंदु शेखर पाठक:ज्योति पर्व दीयाबाती केर फलक बड़ पैघ अछि। अपना देशमे बहुत रास पाबनि मनाओल जाइत अछि, मुदा सभक फलक राष्ट्रिय स्तरक नञि होइत अछि। बहुत रास पाबनि क्षेत्रीय स्तरपर सेहो मनाओल जाइत अछि, जेना छठि। ई समग्र देशमे नञि मनाओल जाइत अछि, मुदा दीयाबाती तेहन पाबनि अछि जे देशक बहुलांश भागमे तँ लोक मनबिते छथि, विदेशोमे भारतीय लोक एकरा पूर्ण आनन्द आ उल्लासक संग मनबै छथि। ‘दीप’ आ ‘अवली’, संस्कृतक एहि दू शब्दक मेलसँ ‘दीपावली’ शब्द बनल अछि जकरा मिथिलामे अपना सभ दीयाबाती कहि सम्बोधित करै छी। दीप शब्दक संग ‘अवली’ शब्द जोड़ल गेल अछि जकर अर्थ होइत अछि ‘पंक्ति’। माने दीपक पंक्ति किंवा शृंखला भेल दीपावली वा दीयाबाती। ई अन्हारसँ प्रकाश दिस गमनक पर्व अछि। एकर आरम्भ धनतेरससँ भऽ जाइत अछि, जकरा मिथिलामे सुखरात्रि किंवा सुखराति कहल जाइत अछि। सुखरातिक पहिल दिन धनतेरस, दोसर दिन यम दीपावली, तेसर दिन दीपावालीक संग लक्ष्मी-गणेश आ माता कालीक पूजन, चारिम दिन गोवर्द्धन पूजाक संग अन्नकूट आ पाँचम दिन भातृ द्वितीयाक संग भगवान चित्रगुप्तक पूजा होइत अछि।
धन्वन्तरि पूजा आ धनतेरस
सुखरातिक पहिल दिनकेँ धनतेरसक रूपमे मनाओल जाइत अछि। कार्तिक कृष्ण पक्षक त्रयोदशी तिथिकेँ भगवान धन्वन्तरिक पूजन होइत अछि। मान्यता अछि जे एही दिन भगवान धन्वन्तरिक जन्म भेल छलनि। तेँ एहि तिथिकेँ धनतेरसक नामसँ जानल जाइत अछि। धनतेरस दिन चानी किनबाक परम्परा अछि। एकर कारण मानल जाइत अछि जे चानी चन्द्रमाक प्रतीक होइत अछि जे शीतलता प्रदान करैत अछि। एहि शीतलतासँ मनकेँ सन्तोष रूपी धन प्राप्त होइत अछि। जकरा लग सन्तोष अछि सैह तँ सभसँ बेसी सुखी अछि। तेँ बहुत रास लोक धनतेरस दिन चानीक सिक्का वा कोनो गहना आदि किनै छथि। ईहो मान्यता अछि जे धनतेरस दिन कीनल गेल धातु धन-सम्पदा बढ़बैत अछि। अपना एहि ठाम लोक धनतेरसकेँ कोनो ने कोनो धातु अवश्य किनै छथि। बहुत रास लोक स्वर्णाभूषण सेहो किनै छथि। तँ बहुतो लोक टीवी, फ्रिज आदि इलेक्ट्रॉनिक्सक समान किनै छथि। एहि सभमे बासन बेसी लोक किनै छथि आ दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश पूजनक समय एहि नव बासनक उपयोग करैत देवीसँ धन-धान्यसँ परिपूर्ण हेबाक कामना करै छथि। लोग धनतेरसे दिन दीयाबातीक राति पूजन लेल लक्ष्मी-गणेशक मूर्त्ति सेहो कीनि लै छथि। ओतहि भगवान धन्वन्तरिक पूजन सेहो कयल जाइत अछि।
यम दीपावली
सुखरातिक दोसर दिन यम दीपावली मनाओल जाइत अछि। पौराणिक कथा अछि जे एही दिन भगवान कृष्ण दैत्य नरकासुर केर संहार केने छला आ सोलह हजार एक सौ कन्याकेँ नरकासुर केर बन्दी गृहसँ मुक्त केने छला। बहुत रास ठाम एहि दिन सूर्योदयसँ पहिने उठि तेल लगा आ पानिमे चिरचिरीक पात दऽ ओहिसँ स्नान करै छथि आ एकर बाद विष्णु मन्दिर वा कृष्ण मन्दिरमे जा भगवानक दर्शन करै छथि। मान्यता अछि जे एहिसँ सभ पाप नष्ट भऽ जाइत अछि। अपना ओहि ठाम मिथिलामे एकरा यम दीपावलीक नामसँ मनाओल जाइत अछि। एहि दिन घरक छोटसँ छोट आ पैघसँ पैघ सभ वस्तुकेँ साफ कयल जाइत अछि। एते धरि जे लालटेन आदिक बाती पर्यन्तकेँ साफ कयल जाइछ। घरक सभ गन्दगी बाहर कऽ देल जाइत अछि आ पहिल साँझ गोआक ढेरीपर गोबरसँ बनल दीप लेसि राखि देल जाइत अछि। एकरा यम दीप कहल जाइत अछि। उल्लेखनीय अछि जे पहिने जहिया माल-जाल बेस संख्यामे पोसल जाइत छल आ खेतमे खादक बदला गोबरसँ तैयार गोआ पटाओल जाइ छल तहिया एकर बड़ महत्त्व छल आ ईहो बढ़ि समृद्धिक प्रतीक बनय तकर आकांक्षा कयल जाइ छल। दोसर जे गोआ सन उपेक्षित ढेरी पर्यन्तकेँ प्रकाशित करबाक भाव एहिमे भरल छल। एखनो माता-बहिन लोकनि प्रतीक रूपमे एकरा मनबै छथि। गोआक ढेरीपर एखनो दीप जरा यम दीपावली मनाओल जाइत अछि। ओना नव चलनसारिमे एकरा छोटका दीपावाली सेहो कहल जाय लागल अछि जे ने शास्त्रीय अछि आ ने पारम्परिक।
दीयाबाती आ काली पूजा
सुखरातिक तेसर दिन मनाओल जाइत अछि दीपावली। एहि दिन लोक अपना घर-प्रतिष्ठानकेँ दीपसँ सजबै छथि। चारू कात दीपक टेमी मुसुकैत अन्हारकेँ खेहारैत अछि। अपना ओहि ठाम माटिक दीप जरेबाक परम्परा रहल अछि, मुदा आधुनिकताक बिहाड़िमे लोक एकरा स्थानपर बिजली-बत्तीक सजावटि करै छथि। मात्र भगवान लग माटिक दीप जराओल जाइत अछि। बजारमे तँ यैह होइत अछि। आब गामो-घरमे लोक माटिक दीपसँ धीरे-धीरे परहेज करैत जा रहला अछि। तथापि शहरक तुलनामे गाममे एखनो माटिक दीप बहुतायतमे देखबामे अबैत अछि। अधिकांश लोक मटियातेलक डिबिया सेहो जरबै छथि, तँ बहुतो मोमबत्ती जरा पाबनिक खानापूर्त्ति करै छथि। पहिने तँ लोक घी केर दीप जरबै छला। महगीक समयमे आब ई सम्भव नञि अछि। तथापि एकरा स्थानपर करू तेल किंवा तीसी तेलक उपयोग कयल जेबाक चाही जे गोट-पगड़े दृष्टिगोचर होइत अछि। नेना-भुटका आ युवा वर्ग फटक्का फोड़ि आनन्दोल्लास मनबै छथि। पाबनिमे आनन्द मनायब तँ उचिते थिक, मुदा हमरा लोकनिकेँ पर्यावरणक प्रदूषण केर सेहो चिन्ता-चिन्तन करबाक चाही। ईहो ध्यान रखबाक चाही जे हमर प्रसन्नता कोनो पड़ोसिया, बूढ़, अस्वस्थ लोक लेल कष्टक कारण नञि बनय। ककरो कोनो क्षति नञि पहुँचय। दीयाबातीक राति लक्ष्मी-गणेश आ भगवतीक कालीक पूजन सेहो होइत अछि। अपना ओहि ठाम लक्ष्मी पूजा तँ कोजागराक राति करबाक परम्परा रहल अछि, मुदा दीयाबातीक राति लक्ष्मीक संग गणेशक पूजन सेहो होइ छनि। खास कऽ व्यापारी वर्ग लेल एकर विशेष महत्त्व अछि। एहि दिनसँ व्यापारी वर्ग अपन नव खाता सेहो आरम्भ करै छथि। लोक घरोमे लक्ष्मी-गणेशक मूर्त्ति केर पूजन करै छथि आ बरख भरि ओकरा राखि नित्य पूजन होइ छनि। पछिला बरखक मूर्त्ति दीयाबातीक प्रात विसर्जित कयल जाइत अछि। दीयाबातीक रातिएमे माता कालीक पूजन सेहो होइ छनि। जिनक कुलदेवी माता काली छथिन हुनका ओहि ठाम विशेष पूजन तँ होइते अछि, काली मन्दिर सभमे सेहो विशेष पूजा-अर्चना कयल जाइत छनि। ठाम-ठाम भगवतीक कालीक मूर्त्ति प्रतिष्ठित कऽ सार्वजनिक पूजन सेहो होइत अछि। अगिला दिन हुनक मूर्त्तिकेँ विधि पूर्वक पूजनक उपरान्त विसर्जन कऽ जलमे प्रगवाहित कयल जाइत अछि।
गोवर्द्धन पूजा आ अन्नकूट
सुखरातिक चारिम दिन गोवर्द्धन पूजा होइत अछि। अपना ओहि ठामक परम्परामे माल-जाल पर्यन्तक ध्यान राखल जाइत अछि। एहि दिन अन्नकूट सेहो होइत अछि। अपना ओहि ठाम गायकेँ तँ पूजनीय मानले गेल अछि। शास्त्रक अनुसार गाय गंगा नदीक समान पवित्र होइत अछि। गायकेँ माता लक्ष्मीक रूप सेहो मानल जाइत अछि। तेँ गायक पूजन तँ एहि दिन होइते अछि, बड़द, महीँस, बकरी आदिक पूजन सेहो होइत अछि। एहि दिन सभ माल-जालकेँ पवित्रता पूर्वक स्नान कराओल जाइत अछि। सिंह आ खुरमे तेल लगाओल जाइत अछि। नीक-निकुत भोजन कराओल जाइत अछि। ओकरासँ कोनो काज नञि लेल जाइत अछि। एते धरि जे बड़द आदिक चुमाओन कऽ ओकरा पान सेहो खुआओल जाइत अछि। रस्सी बदलल जाइत अछि। सौँसे देहपर रंग लगाओल जाइत अछि। कते ठाम माल-जालक पाबनिमे हुड़ियाहा केर खेल सेहो होइत अछि। गौशालामे सेहो ई पर्व उमंग आ उल्लासक संग मनाओल जाइत अछि। कहल जाइत अछि जे भगवान श्रीकृष्ण ब्रजवासी लोकनिकेँ इन्द्रक कोपसँ होबऽवला मूसलधार वर्षासँ बचेबा लेल गोवर्द्धन पहाड़केँ अपन कनगुरिया आङुरपर उठा कऽ रखने छला। ओहि पहाड़क तर सभ गोप आ गोपिका आश्रय लेलनि। एही पौराणिक घटनाक प्रतीक रूपमे ई पाबनि मनाओल जाइत अछि। बहुत ठाम अन्नकूट सेहो मनाओल जाइत अछि। भगवानक आगाँ सैकड़ो प्रकारक पकमान राखि हुनका भोग लगाओल जाइ छनि।
भ्रातृद्वितीया आ चित्रगुप्त पूजा
सुखरातिक अन्तिम पाँचम दिन भाय-बहिनक पवित्र प्रेमक प्रतीक पर्व भ्रातृद्वितीया मनाओल जाइत अछि। कार्तिक मासक शुक्ल पक्षक द्वितीया तिथिकेँ मनाओल जायवला एहि पाबनिमे बहिन भाइकेँ नोतै छथि। ठाँव-अरिपन कयल स्थानपर अरिपन कयल पीढ़ी राखि ओहिपर भाइकेँ बैसाओल जाइत अछि। आगाँमे मटकूरमे पानि, पान, अँकुरी, द्रव्य, कुम्हरक फूल राखल रहैत अछि। भाइ अपन आँजुर बहिनक आगाँ रखै छथि। बहिन भाइकेँ पिठार आ सिन्दूरक तिलक लगबै छथि। फेर हाथपर पिठार आ सिन्दूर लगा मटकूरसँ पान, अँकुरी आदि बहार कऽ भायक हाथपर राखि ओकरा जलसँ धोइत मटकूरमे खसबैत बहिल हुनक दीर्घ जीवनक कामना करै छथि। ई क्रम तीन बेर होइत अछि। एकर बाद बहिन अँकुरी खोआ भाइकेँ अपना ओहि ठाम भोजन सेहो करबै छथि। बहुत ठाम एहि दिन बहिन लोकनि सामूहिक रूपसँ बजरी कुटबाक परम्पराक निर्वाह करै छथि। ई मिथिलाक परम्परा नञि अछि, मुदा मिथिलोमे एकर नीक चलनसारि भऽ गेल अछि। बहिन सभ बजरी कुटबाक बाद अपना भाइ केर प्रसंग अशुभ बाजि जीहमे रेगुनीक काँट गड़ा पश्चाताप करैत भाइ केर मंगलकामना करै छथि। एमहर एही दिन चित्रगुप्त पूजा सेहो होइत अछि। मिथिलाक कायस्थ समाज एहि दिन भगवान चित्रगुप्तक पूजन करै छथि। एहि दिन ओ सभ कलम-दवात पूजा-स्थलपर रखै छथि आ लिखबा-पढ़बासँ परहेज करै छथि। अनेक ठाम सार्वजनिक रूपसँ भगवान चित्रगुप्तक भव्य प्रतिमा स्थापित कऽ पूजन होइत अछि। एहि अवसरपर सांस्कृतिक कार्यक्रमक संग कायस्थ समाजक प्रतिभावान नेना लोकनिकेँ पुरस्कृत सेहो कयल जाइत अछि। कहबा लेल तँ ई कायस्थ समाजक धार्मिक उत्सव अछि, मुदा एहिमे समग्र समाज समवेत
होइत अछि। भगवानक दर्शन करबाक लेल तँ पहुँचिते छथि, बहुतो ठाम आयोजनमे सक्रिय सहभागिता सेहो रहैत अछि। पूजनक अगिला दिन मूर्त्ति विसर्जनक संग चित्रगुप्त पूजाक समापन होइत अछि।एकरा संगहिँ सम्पन्न होइत अछि मिथिलाक सुखराति किंवा सुखरात्रि। एकरा लगले आरम्भ भऽ जाइत अछि सूर्याेपासनाक महापर्व छठि केर तैयारी। एहि बेर शुक्र 1 नवम्बरसँ आरम्भ भऽ रहल अछि सुखराति। आउ हमरो लोकनि एहिमे समवेत होइ आ समग्र मिथिला धन-धान्यसँ परिपूर्ण हो आ सभ तरि सुखे सुख हो तकर मंगलकामना करी।