दिल्ली-मिथिला मिररः अदौकाल सं मिथिला नारी कें शक्ति रूप मे पूजैत अयला अछि। दुर्गा पूजा सं लय समस्त नीक कार्य मे हमरा लोकनिक समाज मे कुमारी भोजन आ हुनक पूजनक प्रचलन रहलैक अछि। मिथिला जगजननीक धरती थिकैक आ एक सं एक विदुषीक जन्म मिथिलाक धरती पर भेलैक अछि। मिथिला जे आदिकाल सं अपन एकटा अगल संस्कार, भेष-भूषा आ खान-पानक लेल पहचानल जाइत रहल अछि। समय लगातार अपन अक्ष पर घूमी रहल छैक आ नवसंरचनाक सृजन करवा मे सतत लागल अछि। हमरा लोकनि इक्कसवीं सदी मे बैसल छी जमाना चांद आ मंगल पर पहुंच गेलै मुदा एखनो मैथिल समाज मे रहनिहार पुरूष लोकनि अहि बात कें मानवाक लेल तैयार नहि भय रहला अछि जे सामाजिक संरचनाक निर्माण मे स्त्रीक सेहो कोनो योगदान होइत हेतैक अथवा होइत छैक। सैकड़ो बरख सं पुरूष प्रधान अहि समाज मे जौं स्त्री अपना आप कें आगु बढे़वाक कनिको कोशिश करैत छथि आ ओकरा दंभकारी आ समाज मे कथित रूप सं बैसल किछु लकवाग्रस्त सोचक सं ग्रसित पुरूष लोकनि लोक लाजक पाठ पढ़ा ओहि नारीक बल आ समर्पण कें वध करवाक कोनो कसैर बांकी नहि रखैत छथि।
मिथिला-मैथिलीक विकासक लेल लकवाग्रस्त सोचक त्यजन जरूरी
समयक संग परिवर्तन आवश्यक
परिवर्तन संसारक नियम थिक आ जौं समयक संग परिवर्तन नहि होइत छैक त ओहिक बादक जे परिणाम सामने आबैत अछि ओ बहुत बेसी प्रतिकूल असर छोडि़ आवैय वला पढि़ कें अभिषापित कय चलि जाइत अछि। एकटा कहावत मिथिल मे बड़ पुरान छैक कि ‘आडि़क चुकल किसान आ डाढि़क चुकल बानर’ कहियो नहि उठी पावैत अछि अहि शब्द कें स्वामी विवेकानंद अपना रूप सं लिखलनि कि ‘उठो, भागो और तबतक दौड़ते रहो जबतक कि अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लो’ अर्थात जीवन मे एकटा लक्ष्य कें लय लचब बहुत बेसी आवश्यक छैक। हां, समाज मे अपन प्रभुत्वक लेल मोछ त ताव देनिहार कुसाग्र मानसिकताक लोक, सब दिन अहि बातक विरोध करैत रहल जे समाज मे कोनो नव चेतना जागृति नहि होइ आ ओकर तालिबानी फरमान कें समाज मे रहि रहल लोक मनवाक लेल मजबूर होइत रहैथ। समाज मे रहैवला आधा आबादी कें पर्दा प्रथा मे राखि अपना आप कें शिक्षित आ संभ्रांत बनेवाक जे स्वप्न मैथिल समाज देख रहलनि अछि शायद ओकर सार्थक परिणाम कहियो सामने नहि आओत।
नारीक योगदान आ सम्मान
जौं मिथिलाक वर्णन कतौ होइत छैक त सब सं पहिने जगजननी मां सीताक नाम आबैत छन्हि। आदिगुरू शंकराचार्य सेहो भारतीक सोंझा अपन हारि स्वीकार्य कयने छलाह। रानी लखिमाक नाम प्रायः सब कियो जनैत हैब। खैर, ई सब पुरान बात भय गेल मुदा जाहि देश मे देशक सर्वोच्च पद अर्थात प्रथम व्यक्ति राष्ट्रपतिक पद पर एकटा महिला स्थापित भय सकैत छथि, विश्वक सब सं पैध लोकतांत्रिक मंदिर कें प्रमुख अर्थात लोक सभा अध्यक्ष जौं महिला भय सकैत छथि। वर्तमान सरकार मे जौं विदेश मंत्रालय सन अहम पद पर महिला स्थापित भय सकैत छथि, जौं महिला विमान उडे़वाक लेल आ पुलिस प्रशासनिक सेवा मे जेवाक लेल तैयार छथि। जौं महिला प्रधानमंत्री, राज्यपाल सं लय मुख्यमंत्रीक अहम संवैधानिक पद पर आशिन भय चुकल छथि, जौं आजादीक संपूर्ण संग्राम मे महिलाक अहम योगदान भय सकैत अछि, जौं न्यायक मंदिर मे न्यायाधिशक कुर्साी पर महिला बैस सकैत छथि त फेर महिला आ नारी शक्ति कें संकुचित क रखवाक अधिकार कथित रूप सं बेमार मानसिकताक लोक कें के देलक अछि? समाज मे प्रतिष्ठि भय रहव आवश्यक छैक, साड़ी मे नारीक पूर्ण स्वरूप देखवा मे भेटैक छैक अहि मे कोनो दुम्मैत नहि मुदा घोघ मे प्रतिभाक भ्रूण हत्या केनाई कते तक सार्गभित?
बराबर कें अधिकार आवश्यक
जौं कोनो घर मे बेटा शिक्षित होइत अछि त ओहि सं एक व्यक्ति कें शिक्षित मानल जाईत छैक मुदा जौं कोनो घर मे बेटी शिक्षित होइत छथि त ओहि सं आवैवला बहुत रास पुस्त शिक्षित होइत अछि। महान दार्शनिक अरस्तुक मानी त मनुष्य एकटा सामाजिक प्राणी अछि आ मनुष्यक पहिल विद्यालय घर होईत छैक। स्वभाविक अछि, जौं बच्चाक माय शिक्षित हेतथि त ओहि बच्चाक भविष्य सेहो उज्जवल हेतैक। पुरूष प्रधान अहि समाज मे जौं पुरूख किछु करैछ त ओ ओकर शान मे आवैत छैक मुदा जौं स्त्री किछु करवाक लेल डेग उठावैथ त हुनका चरित्रहीन बतेवा मे हमरा सब कनियो देरी नहि करैत छी। एकटा पुरूष विवाहक बाद बहुत रास अन्य महिलाक संग अवैध संबंध बना क रखैय त ओ ओकर शान आ काबिलियत होइत छैक मुदा जौं एकटा महिला आधुनिक परिधान मे अपन पतिक संग कोनो फोटो खिचवा ओकरा सार्वजनिक करै त मिथिला-मैथिलीक कथित ठेकेदारी केनिहार लकवाग्रस्त सोच सं भरल पुरूष लोकनि कें ओहि समय मिथिलाक संस्कृति आ परिधानक याद आबय लागैत छन्हि मुदा असलियत इ अछि जे ओ व्यक्ति जे समाज सुधारक ठेका लेने बैसल छथि हुनक स्वयं के चरित्र मे चालनि सं बेसी छेद छन्हि।
समाज निर्माणक लेल प्रोत्साहन जरूरी
मिथिला आई बिहार सं लय दिल्ली आ नेपाल धरि मे अपन असित्वतक लड़ाई लड़वाक लेल हक्कन कानि रहल अछि मुदा ता धरि मिथिलाक आंदोलन भारत मे सार्थक नहि हैत जा धरि मिथिलाक बेटी अहि आंदोलन सं नहि जुड़ती। तालिबानी सोच रखैय वला ओहि मिथिला-मैथिलीक कथित ठेकेदार लोकनि कें अहि बातक पूर्ण बोध हेवाक चाहि जे जौं सीता साड़ीक मार्याद मे छलथि त देवी छलिह मुदा जखन देह सं वस्त्र हटल त पल भरि मे सहस्त्राबाहु रावणक बध भेल छल। स्वयं भगवान राम सीताक ओहि रूप देखि सशंकित भय गेल छलथि आ बाद मे ओहि रूप कें शांत करवाक लेल त्रिकालदर्शी महाकाल कें स्वयं लीला करय पड़ल छलनि। स्त्री कोनो काटक गुडि़या नहि छथि जिनका जीवन भरि घर मे कैद कय राखल जाय। बेटी आय चांद तक पहुंच गेलथि मुदा अखनो तक समाज मे स्त्री कें मात्र भोग विलासक वस्तुक रूप मे देखल जा रहल अछि। मैथिल समाज कें अहि बात पर गंभीर चिंतन करवाक आवश्यकता छन्हि जे आंदोलनक बागडोर कोनो स्त्री लोकनि कें हाथ मे थाम्हल जाय। जौं एकबेर स्त्री मिथिलाक आंदोलनक मे जुटी जेतीह त मिथिलाक नव संरचनाक निर्माण कें कोनो ताकत नहि रोकि सकैत अछि। मुदा मोछ पर ताव देनिहार मैथिल समाज अपन प्रतिष्ठाक अभिमान सं बाहर निकली स्त्री कें प्रोत्साहित करतथि ई एतेक जल्द संभव नहि।
परिधान पर नहि हो टिका-टिप्पणी
समय आब जांत-ढेकी आ उक्खैर-समांठ सं निकली कंप्यूटर सं होइत एंड्राईड मोबाईलक आबि गेल अछि। गांव घर मे सेहो आब लड़की लोकनि साईकिल, स्कूटी सं लय कारक ड्राईविंग सीट पर बैसय लगलथि, वास्तव मे ई एकटा नव भोरूकवाक उदय थिक। महिला कें अहि बातक पूर्ण आजादी भेटनि कें ओ अपना सुविधा आ जगहक हिसाब सं अपन पहिराव आ वस्त्रक चुनाव करैथ। जाहि ठाम साड़ी आ घोघ तनवाक जगह होई ओहि ठाम ओहि रूप मे आ जाहि ठाम अपना आप कें आधुनिक बेनवाक होई ओहि ठाम आधुनिक रूप मे सामने एवाक लेल प्रोत्साहन हेवाक चाहि। मनुष्य कपड़ा सं नहि बल्कि बुद्धि सं शिक्षित आ विकसित कहावैत छथि आ जौं बुद्धि साकारात्मक होइ त सब किछु सार्थक लागैत छैक। हां, अहिठाम किछु जिम्मेदारी महिला लोकनिक सेहो बनैत छन्हि कि ओ जाहि तरहक वस्त्रक चुनाव करैथ ओहि मे अहि बातक ध्यान अवश्य हेवका चाहि जे अपन सभ्यता आ संस्कृति सेहो मर्यादा रहैय। समाज मे जौं लोकक विचार सुंदर हो आ पुरूष समाज अहि बात कें स्वीकार करवाक लेल तैयार भय जाइथ जे महिला सेहो अहि समाजक अभिन्न अंग छथि आ हुनको पुरूखक संग जिवाक पूर्ण आजादी छन्हि त फेर समाज मे अहि तरहक बात सामने नहि आयत।
आखिर समाजक ठेकेदारक सोंझा सब दिन सीता कियैक अग्नि परीक्षा दैत रहती। आखिर कियैक समाज मे पुरूष खुजल सांढ़ जेना घुमैत रहत? सब दिन महिलाक परिधान आ चरित्र पर कियैक प्रश्न चिन्ह लागत, पुरूषक लेल सेहो जीवाक मांपडंड हेवाक आवश्यकता जरूरी। जरूरत छैक एकटा सार्थक सोचक, जरूरत छैक एकटा जनजागृतिक, जरूरत छैक एकटा नवक्रांतिक जे ओ समाजक ओहि कथित ठेकेदार लोकनि कें मुंहतोड़ जवाब दय सकैय जे स्त्रीक मुंह सं बेसी ओकर अंग वस्त्र देखि ओकरा पड़ टिक्का-टिप्पणी करैत हो। मैथिल समाज कें अहि बात कें स्वीकार्य करवाक चाहि जे समयक संग हमहुं सब बदली आ इक्कीसवीं सदी मे पुरूष आ महिला कांह सं कांह मिला नव मिथिलाक सृजन मे बराबर के हिस्सेदारीक निर्वहन करी।