वाह वाह रे मनुजक मोन, शिव कुमार झा टिल्लू
लाज विचार विखक सरितामे
घोरि बनाओल धाखक तेल
विधनोसँ नहि ड’र बचल छै
मनुखक हीया कत’ चलि गेल ?
तंत्री लेल ई दारुण जीवन
बनि रहलै बड़का हथियार
घड़ियालक सन नोर बहाक’
सभ व्यपारी करय शिकार
दीना दीनक गति देखल जग
उत्कले नहि उत्कट भेल देश
के पहिने वाहवाही लूटत
धएने सभ संचारी भेश
रुग्ण कान्हपर ओ लहास ल’
चलल जडाब’ दस बीस कोस
पाछाँ जे ओ तस्वीर खीचै
पकड़ि लेतय से नहि छल होश
मरल नारि बिंहुसल दीनाकेँ
सभसँ पहिने ह’म देखायब
संचारक हम सार्थक प्रहरी
युगकेँ पहिने ह’म जनायब
औ बाबू अहाँ लोको ने छी !
चारि कान्ह त’ द’ दितियै
सबलक वाहवाही फेर भेटतै
दीनक सेहो नेह लितियै
क्षय रोगक जौं ड’र छलै त’
कटही गाड़ी लितहुँ जोगारि
अर्थक अर्थी खूब बहारलहुँ
दीनक चचरी दितहुँ बहारि
शासक केँ त’ चर्च व्यर्थ अछि
कोना हँसोथब ओक्कर मोन
दीना सन छै भरल वर्त ई
लाशक संग बौआइत वोन
बिसरि गेलहुँ हम को’न मनुख छी
कहिया छल पंछी ई सोन
इतिक पराभव आभारक संग
वाहवाह रे मनुजक मोन !