प्रतिवादी हम : प्रतिवादक बहन्ने अपन संस्कृतिक भूमंडलीकरण

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    “पोथी समीक्षा ” प्रतिवादी हम:

    तरुण कवि श्री नारायण झाक पहिलुक मुदा प्रगतिवादी काव्य संकलन थिक : “प्रतिवादी हम”. जीवनक विविध बहुरंगी आयाम केँ स्पर्श करैत कवि ७५ गोट काव्य केँ एकत्रित क’ अपना मोने प्रतिवादक स्वर देलनि अछि .पढ़लाक बाद एहि मे प्रतिवाद जकाँ विशेष किछु बुझना नहि गेल.
    स्वाभाविक होइछ अपन अन्तर्मनक सांस मे समाहित कवित्व केर प्रदर्शन पहिलुक बेर कर’ काल मे ई दृष्टिकोण भेनाइ कोनो अजगुत नहि . हमरा हिसाबें व्यवस्थाक विरुद्ध एहि मे विशेष स्वर नहि अछि , वरेण्य जीवनक क्रम-व्यतिक्रम मे औनायत अवांछित तत्व केँ कवि व्यवस्था सँ हटब’ चाहैत छथि.

    आमुख मे प्रवीण साहित्यकार प्रो . डॉ अशोक अविचल एकरा ” समधानल आ सकारात्मक स्वरक ” संज्ञा देलनि अछि , जे सरिपहुँ काव्य संकलनक दृष्टिकोण केँ सोलह आना स्पर्श करैत अछि . कविक यथार्थ भोगल छन्हि, मुदा ! प्रदर्शन हिनक अपन उच्छ्वास सँ जोड़ल नहि .काव्यक इएह सार्थकता कालक्रम मे हिनक उचित स्थान निर्धारित करतनि.

    मुक्तक काव्य संकलन आ कथा संग्रह मे शीर्षक वा एकल दृष्टिकोणक निर्धारण कदाचित सम्पूर्ण नहि होइछ , कारण एकर सृजन केर उद्देश्य कोनो खास विषय केँ धिआन मे राखि क’ नहि होइत छैक . एहि संकलन मे सेहो राग-द्वेष , वर्ण-अवर्ण, यति-नियति क संग संग संलयन -विखंडन सबहक तादात्म्य अछि . सभ सँ बेसी महत्तक बून काव्यक मूल दृष्टिकोण थिक : “असतो मा सद्गमय ” . समस्या सभ किओ उत्पन्न क’ सकैत छथि , मुदा जे समाधानक उत्पत्ति करथि हुनके प्रभुत्व सार्थक आ हुनका संग संग समाजक लेल उपयोगी मानल जाइत अछि . नारायण जी एहि गुणक कारणे आन युवा कवि सँ आगाँ बढ़ल बुझना जाइत छथि
    कवि हमर संस्कृति मे निहित अवगुणक चर्च करैत छथि , ओकरा विरुद्ध सार्थक प्रतिवाद सेहो करैत छथि मुदा संग संग कारण आ निदान सेहो देखबैत अछि .

    सम्पूर्णता कतहु संभव नहि तें कोनो -कोनो ठाम हुसि सेहो गेल छथि .मुदा कोनो कविता केँ निरर्थक प्रमाणित करब संभव नहि भ’ सकल . आन भाषाक कथाकथित मैथिली विरोधी आलोचकक लेल ” प्रतिवादी -हम ” एकटा चुनौती ल’ क’ आयल अछि जे मैथिल अपन रचना मे अपन संस्क़ति सँ बाझल जकाँ रहैत छथि ,,(ओना ई तथ्य पूर्णतः निराधार अछि .) संग संग मैथिलीक लेल खुशीक विषय जे प्रतिवादी हम एहि ठाम सम्पूर्णताक परिचायक जकाँ बुझना गेल . एहि मे आचार – विचार , रीति-नीति अर्थात सम्पूर्ण सभ्यता -संस्कृति भूमंडलीकृत अछि .

    ई सरल आ बोधगामी भाषा शैली मे लिखैत छथि जाहि कारणे लोकप्रियताक संभावना बेसी मानल जाय . एखन वर्तमान तरुण कवि मे सँ किछु ई सोचैत छथि जे पाठक , साहित्यकार वा आलोचक किओ होथु कोना हुनका सभ केँ दिक्भ्रमित कयल जाय . एक आध रास चर्चित युवा कवि एहि मे महारथ प्राप्त कयने छथि जे साहित्यक भविष्यक लेल कदापि उचित नहि. एहि सँ अलग नारायण जे सोचैत छथि, वेअह लिखैत छथि कतहु रचनामे अक्खड़पन आ उताहुल अभिव्यंजना नहि देख’ मे अबैछ . सहज पाठक सेहो अभिव्यक्ति आ कविताक मर्म बूझि सकैत छथि .

    पहिलुक कविता ” एकता ” मे सहज उद्बोधन विशेष आकर्षक त’ नहि मुदा यथार्थ दृष्टिकोण केँ आत्मिक भाव सँ देखार धरि अवश्य करैत अछि . धर्मनिरपेक्षताक सिद्धांत बरु कहय जे सभ धर्म समभाव मुदा कवि एहि सँ आगाँ बढ़ि पंथक लकीर तोड़ि अल्लाह केँ राम आ ईसा केँ श्याम मानबाक लेल उद्दत छथि , जे पंथक बिखण्डनकारी तत्वक लेल एकटा सनेश सेहो बूझल जाय :
    जे थिकाह अल्ला , हुनके कही राम
    जे थिकाह ईसा कहैत छी श्याम
    कखनहुँ बनि सांई , कखनहुँ हनुमान
    सभ देवी देवताक थिक नाना नाम ……

    समाज मे दलित आ नारी विमर्श यथार्थ सँ बेसी मंचस्थ जकाँ रहि गेल अछि. किछु लोकएहि सर्वगामी समस्याक पराभव सँ बेसी एकरा अपन उत्कर्षक हथियार मात्र बनयबा लेल कृतज्ञ छथि .मंच सँ उतरिते समाधानक चेष्टा सेहो नहि तें कवि बिनु किछु कहने दुखित छथि. “नारी” कविता मे हिनक हीआक हिल्कोरि परम्परागत छन्हि ..किछु नव नहि, मुदा !संभावनाक देखार आ स्थितिक व्याख्या अभिरल आ नवीनता सँ झामरल लगैछ ….
    घूमल आब युगक पहिया
    अपन बल देखायब कहिया
    छोड़ू पग नुपूर कंगना हार
    गुण अरजि पहिरू विद्याक श्रृंगार
    स्वर बुलंद करू संभावना अपार ……..

    “विषमता “कविता घँटैत लिंगानुपात पर प्रतिवाद थिक. कन्या भ्रूण ह्त्या सन ज्वलंत समस्याक व्यथागान थिक ..जे मैथिली साहित्यमे नैका पिरही लेल निदानक आराधना जकाँ लगैछ …….

    अंकुरी पड़िते घोंटि ठोंठ
    तकैछ बाट बेटा केर
    कखनहुँ ओहि संग अपनहु प्राण
    गमबैछ जानि-बूझि सबेर………

    एहि कविता मे कवि एकटा गंभीर चूकि सेहो कयने छथि अनचोके मे वा संज्ञानक खगता मे कन्या भ्रूण हत्याक सम्पूर्ण दोख कवि नारी मात्र पर गढ़ि देने छथि. यथार्थ मे हमर समाजक नारी पुरुषप्रधान मनोवृति मे ततेक ने बझाओल गेलीहें जे हुनको ” बेटी ” शब्द सँ क्षोभ जकाँ भ’ गेल छन्हि . एकर ई अर्थ कदापि नहीं लगाओल जा सकैछ जे ” माय ” संतानक रूपेँ मात्र “बेटा” चाहैत छथि .काल आ परिस्थिक ई उपहासक लेल नारी कोनो अर्थ मे दोषी नहीं छथि ….ओना एहन सन कविक व्यक्तिगत अनुभव सेहो हुअनि, मुदा एकरा सबहक लेल प्रयोग करब अनुचित होयत . बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर सभ दिन दलित आ शोषितक लेल समर्पित रहलाहें , मुदा अपने ” बौद्धधर्म ” स्वीकार क’ लेलथिन्ह . एकर अर्थ कदापि नहि लगाओल जा सकैछ ,जे ” दलित” आब हुनका घृणा जकाँ लगैत छलनि..ओ त’ विषम समाजक व्यथा मात्र छलैक …कविक एहि चूकि केँ परम्परावादी धारणा सेहो मानल जा सकैछ मुदा ई अपराध जकाँ लागल ….

    नारी प्राणक दुश्मन नारी
    पुरुष वर्गक कोन दोष
    बिनु नारीक मने नहि होइछ
    नारी जीवनक अकाल शेष ..

    एहि लेल नर -नारी सँ बेसी दोषी हमरा सबहक दृष्टिकोण आ कालक्रमक विवशता केँ माननाइ उचित होयत . समाज मे नीतिगत विषमता अछि, बेटा कतबो कुपात्र भ’ जाय मुदा अंतिम क्रियाकर्मक अधिकारी वेअह होइत अछि . किछु हद धरि व्यवस्थाक संग -संग ई असमंजस उचित सेहो छल, किएक त ‘ बेटी दोसर घर जाइत छलीह वा जाइत छथि . बेर-कुबेर अपन दायित्व मे बान्हल रहबाक कारणे अपन माय -बाप पर धियान नहि द’ पबैत छलीह . एकर नकारात्मक प्रभाव ओहि माय-बाप पर भेलन्हि जे ” निपुत्र ” छलथि . ओहि काल संतान मने पुत्र बुझना जाइत छल . एहि दृष्टिकोण सँ अंतर्द्वंद्व आ अवहेलनाक प्रभाव घ’र मे बैसलि कोमल हृदयी नारी पर पड़ल आ ओ पुत्रक लेल उताहुल जकाँ प्रस्तुत भेलीह . आब ज़माना बदलल तें साहित्य मे सेहो एहन सन गंभीर विषय पर लेखनीक बान्ह पोरगर भेनाइ बेसी प्रासंगिक होयत .
    एहन मोन ओहि नारीक होइत छन्हि जे समाजक कठकोकाड़िक डाँग घर मे रहि क’ सहैत छथि. जे शिक्षित , सम्बल आ साध्ययुक्त नारी छथि ..हुनका लेल संतान शब्द व्यापक होइत छन्हि .

    “बताह छी तें” कविता स्वच्छताक उद्घोष जकाँ करैछ तँ “प्रकृति” वेअह पुरातन धाराक यशोगान जकाँ ..मुदा ओहि मे छिटकब , थथमारने सन विलुप्त होइत खांटी शब्दक नीक ढंगेँ प्रयोग कयल गेल अछि.

    “प्रकृति पीड़ा” मे प्राकृतिक संतुलन केर बाट मे चाली जकाँ सहसह करैत बाधा सबहक बहुत नीक जकाँ प्रयोग कयल गेल अछि सम्पूर्ण काव्य मे मात्र एहि ठाम हास्यरस नीक जकाँ व्यंगक रूप लेलक …..

    उपजयबा लेल नहि बचल खेत
    खेत सँ नमहर भेल पेट
    पेट-पेट क’ मनुक्ख मरि रहल
    तखनहुँ मनुज नहि सम्हरि रहल……………

    जीवनक उद्वेलन सँ कतहु -ने कतहु कवि स्पष्ट डोलि रहल छथि . जखन कोनो काव्यक भाव गंभीर आ विचारमूलक हुए त’ ओहि ” छाहरिवाद” मे कविक अन्तर्मनक मर्म नुकायल रहैछ . सुदूर गाम मे रहनिहार कवि स्पष्तः अपन भोगल यथार्थ केँ अनुभूति सँ जोड़ि देखार त’ नहि कयलनि .मुदा सहृदयी पाठक एहि मर्म केँ ” अविरल स्पर्श ” धरि अवश्य क’ लेत . ” गाछ कविता अद्भुत विचारमूलक काव्य थिक ….

    वसन्ते -वसंत अबैछ जुआनी
    झुमैत गबैत करैत छी मनमानी
    कखनहुँ छी हँसैत छी कखनहुँ कनैत
    सुख-दुःख केँ छी खूब बुझैत …….

    “गाछ बिन फड़क ” कोनो यात्री जीक पत्रहीन नग्न गाछ जकाँ नहि ..ई त’ कविक अपन कविक अपन जुआरिक अगता मे सुखक खगता थिक ..
    .
    सौंसे गाछ मे डगडगी
    हरियर हरियर पात अछि भक़रार
    हरियरी सँ गाछ लोकैत……

    हिनक शब्द कोश मे एहन विलमल , उपटल आ विपटल शब्दक भण्डार छन्हि …जे अधिवासी मैथिलक संग संग अनुशासी मैथिल होयबाक द्योतक थिक .

    एहि गाछ केँ रोम रोम मे
    जुअानी अनोर तोड़ैत अछि
    मदमस्त भ’ चाननो गाछ केँ
    सकुचा लजा रहल अछि
    मुदा एहि गाछक सुंदरता
    आओर बढ़ि आकाश चूमितय
    जखन ओ अपन अस्तित्वक लेल
    आतुरता व्याकुलता सँ
    दितय औनी पथारी
    आ बनि सकतय पूर्ण गाछ …….

    एवं प्रकारे हिनक एहि संकलन मे बहुत रास परिपेक्ष्य अछि .प्रकृति प्रेमक बहन्ने बदलैत वैज्ञानिक धारणाक परिणाम सँ प्रकृतिप्रदत्त सभ कविता केँ कतहु ने कतहु जोड़ने छथि . जे हिनक अभिरुचि संग निपुण काव्य प्रतिभाक परिणाम मानल जाय . हिनक एहि संकलन मे ” पड़ाइन ” क परिणाम सेहो देख’ मे अबैछ . भौतिक साध्यक लिप्सा आ पिपासा मे लोक औनायत- बौआइत रहल अछि . अपन नैसर्गिक संस्कार गुम्म भ’ रहल.

    कोनो साहित्यिक सर्जनाक मौलिक उद्देश्य होयबाक चाही . नारायण मैथिली साहित्यक ” नारायण ” बनि पाबथु वा नहि ! मुदा हिनक काव्य एकटा दृष्टिकोणक संग संग रचना करबाक उद्देश्य रखैछ .जे सरिपहुँ उडनखटोल मे चढ़ल मैथिलीक लेल बहुत अनिवार्य मानल जाय

    . सभ सँ नीक लागल जे कवि युवा छथि, क्रियाशीलता निरंतर रखबाक संभावना सेहो छन्हि. देशकालक विषम अर्थनीति , भ्रष्टाचार , दुर्भिक्षक संभावना आदि विषय सेहो एहि संकलन मे नीक जकाँ सन्निहित कयल गेल अछि . समाजक सूतल नव पिरही केँ जगयबाक लेल— युवा लेल संकल्प , हुंकार , आह्वान आदि कविता लिखने छथि. जे बहुत रास छाप त’ नहि छोड़त मुदा किछु हद धरि दृष्टिकोणक परिचायक मानल जाय. अर्वाचीन भारत के दुई गोट महामानव रवींद्र नाथ टैगोर आ बापूक प्रति काव्य सेहो लिखलनि, बापूक व्यथा त’ किछु हद धरि यथार्थ सँ उबडुब लगैछ , मुदा रवीन्द्रनाथ ठाकुर कविता किछु ख़ास जकाँ नहि . एहन विषय जाहि पर बहुत रास काज भ’ चुकल अछि ओकर चयन या त’ नहि करबाक चाही वा जौं कयल जाय त’ ई धियान धरबाक चाही जे रचना मे किछु ने किछु नव तथ्य अवश्य हो .एहि ठाम सेहो कवि हूसि गेल छथि . कवीश्वर चन्दा झाक प्रति अर्पित काव्य मे काव्यीय लोचक संग संग श्रद्धा भावक अनुपालन बहुत उत्कृष्ट लागल

    निष्कर्षतः परंपराक खुटेसल सँ अंशतः बान्हल रहबाक बादो ” प्रतिवादी -हम ” काव्य संकलन केर सांगह आ बड़ेरी नारायण जीक देखल , सुनल आ भोगल यथार्थक परिणाम थिक जे कतहु विवश नहि बुझना गेल. मैथिली साहित्य मे शोषित विमर्शक खगताक गप्प बहुत रास भेल अछि, जे कतिपय उचित सेहो अछि जौं ओहु सँ आगाँ भ’ क’ सोचल जाय त’ एहि संग्रह मे ” बताह ” (जकरा पागल शब्द सँ विभूषित करब साहित्यिक भाषा मे गारि जकाँ लगैछ ) सन मूल समाज सँ “अक्षोप” बनल निरीहक प्रति श्रद्धा -भावक सृजन सेहो कयल गेल अछि. जे मैथिली साहित्य लेल क्रांतिकारी विमर्श मानल जाय ..शेष अशेष ..

    पोथीक नाओं : प्रतिवादी हम
    रचनाकार : युवा कवि नारायण झा
    ग्राम रहुआ संग्राम , मधेपुर मधुबनी
    प्रकाशक : नवारंभ प्रकाशन पटना
    प्रकाशन वर्ष :२०१४
    मूल्य : १५० टाका

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    समालोचक 
    शिव कुमार झा टिल्लू 
    ग्राम + पोस्ट : करियन
    जिला समस्तीपुर ( बिहार )
    सम्प्रति : जमशेदपुर 
    # 09204058403