लाठी ओ कतबहु तेल पिया लए
हम – सब छि पाषाण सामान
अडिग , लक्ष्य लेल रहबै सदिखन
सुनि ले !..
हक़ चाही नहि चाही दान ।।
नहि दे हमरा राज्य बसए लेल
चाही मुदा निज भाषा केर मान
हे ! कृष्णक जुनि प्रस्ताव ठोकराबै
सुनि ले !..
नहि त’ अर्जुन लेतौ दुर्योधनक प्राण !
तोरा कि होए छौ हम छि असबल
मिथिला-रज भाल सुशोभित अछि मान
आ जँ नहि विश्वास हेतौ हमरा पर
सुनि ले !..
त’ पक्किया हेथुन विधाता बाम !
रौ हम चुप छी त’ मोन बढ़ए छौ
तू एहिना करमें हमर अपमान ?
सुनै छेँ ! हमरा जँ छूमें जरि जेमें तू
सुनि ले !..