पर्यावरणक रक्षा हेतु लिखल गीत “दुर्दिन के न्यौता”

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    मानव दै दुर्दिन के नौता , पर्यावरण बिगाडि. कऽ ।
    नै सोचै छै की फल हएतै, गाछी बृक्ष उजाडि. कऽ ।।
             सुन्दर धरती बन्जर बनतै, अन्हर मेघ बिहाडि. बढौतै ।
               क्षय हएतै ओजोन परत के, जरत मरत सब  हारिकऽ ।।
                     नहि सोचै छै की फल हएतै…………
    भूमि प्रदूषण शोर प्रदूषण, एतबे नहि तापीय प्रदूषण ।
    महा प्रलय के वायु प्रदूषण, लौतै छप्पर फाडि. कऽ ।।
                      नहि सोचै छै की फल हएतै…………
            लन्दन मन्ट्रीयलक सम्झौता,यू. एन. ओ. के भेट बार्ता ।
            निष्फल होएत बैसल रहने, हएत ने सिर्फ प्रचार सँ ।।
                       नहि सोचै छै की फल हएतै………….
    अबिऔ सब क्यो बृक्ष लगबिऔ, तृषित भूमि के हरित बनबिऔ ।
    अहू नाम पर भीख नै माँगू, दूनू हाथ पसारि कऽ ।
                        नहि सोचै छै की फल हएतै………….
    मानव दै दुर्दिन के नौता, पर्यावरण बिगाडि. कऽ
    नहि सोचै छै की फल हएतै, गाडी बृक्ष उजाडि. कऽ।।
    रचना:- काली कान्त झा “तृषित”