दिल्ली-मिथिला मिररः चर्चित युवा कवि नारायण झा द्वारा लिखल इ नवका कविता, जाहिमे आम जिनगीक मुल्य आ ओकर सार्थक चित्रण अछि। एकरा पढ़ि आ एकर भावकें बूझि।
नित रक्त सँ
सिक्त होइत धरती
रिक्त होइत सज्जनक
धड़ सँ मुड़ी हटल
रक्ते धरती पटल
ओ एखने पड़ायल
एमहर..
उमहर..
ओह!
अधगेड़े पर छौ पड़ल ।
घर मे झौहरि
पुलिसक आबाजाही
खोजी कुत्ता
सुंघैत यत्र – तत्र
फोटो फाटो गत्र – गत्र
पुलिसक सामियाना खसल ।
अधिकारी कारी कोन गोर
सबहक एकटंगा दौड़
उच्चस्तरीय कमिटीक गठन
रंगवीरही जाँच – पड़ताल
छह महीना सँ
दू चारि साल
हत्यारा पकड़ायल
यैह ले बैह ले भागल
पुनः जाँच
की झूठ, की साँच
विपत्तियेक पहाड़ टूटल ।
पुनः तक्काहेरी
कखन पड़तै
हत्याराक हाथ बेड़ी
सभटा नौटंकी
अथाह मे परिवार पड़ल
नोरहि सँ धार भरल
जीवनक बरोबरि की ?
हाथ हरजाना भेटल ।