दिल्ली, मिथिला मिरर: कोलकाता मैथिली साहित्य एवं संस्कृति केर ध्वजवाहक रहल अछि। सितंबर मास मैथिली साहित्यक नक्षत्रगण स्व0 काशीकांत मिश्र ‘मधुप’, स्व0 डा0 लक्ष्मण झा, आओर स्व0 व्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ जीक जन्म दिनक साक्षी बनल अछि। 07 सितंबर, 1918 कें आधुनिक साहित्यमणि, यशस्वी हस्ताक्षर, स्वतंत्रता सेनानी, ओजस्वी एवं प्रखर वक्ता स्व0 व्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ जीक जन्म हुनक मातृक “जगतपुर” मे भेल। डा0 मणिपद्म मधेपुर हाई स्कूल मे किछु दिन शिक्षा ग्रहण कयलथि। ओहि समय मधेपुर हाई स्कूलक प्रधानाचार्य छलाह मैथिलीक महान अनुरागी स्व0 रमानाथ झा। उच्च शिक्षा प्राप्त करबाक लेल मणिपद्म कोलकाता चलित एलाह। हिनक कलात्मक प्रतिभा देखि नेताजी सुभाषचंद्र बोस हिनका “शान्ति निकेतन” मे अध्ययन करबाक लेल कहलथिन। सुभाषचंद्र बोस हिनका सँ एतेक बेशी प्रभावित भेलाह जे “शांति निकेतन” मे नामांकन करबेबाक लेल एक अधिकारी कें स्वयं पत्र लिखलथि। शांति निकेतन मे अध्ययनक दरम्यान ओहिठाम नोबेल पुरस्कार विजेता जापानी महापुरुष यौन गांगुली (जापानी पुस्तकक रचयिता), भवानी दयाल संन्यासी, रामानंद चटर्जी, दीनबन्धु एनड्रोज एवं रवीन्द्रनाथ टैगोरक सानिध्य मे बंगला साहित्यक विस्तृत अध्ययन कयलनि। एहि क्रम मे डा0 मणिपद्म “चिल्ड्रेन इनसाइक्लोपीड़िया” नामक पुस्तक कें सात बेर अध्ययन कऽ चुकल छलाह। 1936 ई मे कलकत्ता विश्वविद्यालय सँ “होमियोपैथिक” केर डिग्री प्राप्त कय गाम आबि गेलाह तथा अपन बाबूजीक कहला पर “बिसनपुर” मे चिकित्सक रूप मे सेवा प्रदान करब प्रारंभ कऽ देलथि।
मिथिला विकास परिषदक महासचिव अंजय चौधरीक सानिध्य सँ प्राप्त सूचनाक अनुसारे उक्त आशयक जानकारी साहित्य अकादमी, नई दिल्ली मे मैथिल परामर्शदात्री समितिक पूर्व सदस्य एवं मिथिला विकास परिषदक अध्यक्ष बतौर प्रधानवक्ताक रूप मे अशोक झा, स्व0 मणिपद्म जीक जीवन सँ संबंधित अनेकों प्रसंग कें विस्तार सँ उल्लेख करैत एहि महान पुण्यात्मा कें मिथिलाक अनमोल धरोहर बतौलन्हि। झा बतौलन्हि जे डा0 मणिपद्म जखन बिसनपुर मे चिकित्सक छलाह ओहि दरम्यान हिमालयक यात्रा करबाक विचार करैत तत्क्षण यात्रा प्रारंभ कयलन्हि। हिमालयक यात्राक दरम्यान डा0 मणिपद्म मिथिला, बंगाल, असम तथा नेपालक पुस्तकालय सभ मे गहन अध्ययन कयलनि । डा0 मणिपद्म साहसी पुरूष छलथि एवं 1942 ई.क स्वतंत्रता आंदोलन मे जेल सेहो गेलाह। हिनक जेलक संगी छलथिन अमर भारतक शहीद बैकुंठ शुक्ला। जेलहिं मे समाजशास्त्रक अध्ययन कयलथि। जेल सँ छूटलाक बाद बहेड़ा मे कृषि जीवनयापन करय लगलाह। एहि क्रम मे मधुपजी, सुमनजी आओर किरणजीक सँ भेंट भेलनि। बहेड़ा हाई स्कूलक तत्कालीन प्रधानाध्यापक छलथिन उद्भट विद्वान नक्षत्र स्वरूप कवि रामचरित पाण्डेय तथा एक आओरो शिक्षक छलाह कवि, कथाकार राधाकृष्ण बहेर। एहि महान व्यक्तित्वक सानिध्य मे मणिपद्म कें प्राप्त भेलनि साहित्यिक परिवेश।
डा0 मणिपद्मक मांदे अंजय चौधरी महत्वपूर्ण जानकारी दैत कहलनि जे मणिपद्मक सर्वाधिक महत्वपूर्ण जे काज छल ओ छल “लोक महागाथाक उपन्यासीकरण।” वस्तुतः मणिपद्म समस्त कृति एवं लोक संस्कृतिक संरक्षक छलाह। इतिहास, तंत्र, जासूसी, तिलिस्म उपन्यास, कथा, नाटक, एकांकी, कविता, निबंध, संस्मरण, समीक्षा, शिकार साहित्य, बाल साहित्य तथा अनुवाद केर माध्यमें मैथिली साहित्याकाश कें भण्डारण व वृद्धि करैत उदाहरण प्रस्तुत कयलनि स्मृति चिन्ह बनि। कतिपय पोथीक प्रकाशन हिनका द्वारा भेल अछि जे वर्तमानहुँ मे शोधकर्ताक लेल अत्यंत उपयोगी अछि। हिनक प्रथम हिन्दी उपन्यास “प्रथम धारा” 1952 मे प्रकाशित भेल। तत्पश्चात 1953 मे “अनल पथ”, “विद्यापति”, “कोबरा गर्ल”, “लोरिक विजय”, “नैका बनिजारा”, “राजा सलहेस”, “लवहरि कुशहरि”, “राई रनपाल”, “फूटपाथ”, “अर्द्धनारीश्वर”, “दुलरा दयाल”, “नागभूमि”, “कनकी”, “आदिम-गुलाम” तथा भारतीक बिलाड़ि तथा बाल उपन्यास आदिक रूप मे प्रकाशित अछि।
विदित हो कि 1973 मे जखन हिनका “साहित्य अकादमी” पुरस्कार सँ सम्मानित कयल गेलनि ताहि समय महाराष्ट्र भवन मे तत्कालीन महाराष्ट्रक मुख्यमंत्री द्वारा “गार्ड ऑफ आॅनर” सँ सेहो सम्मानित कयल गेलनि। 1976 मे “राष्ट्रभाषा परिषदक तत्वावधान मे बिहारक तत्कालीन राज्यपाल भण्डारे द्वारा सेहो “गार्ड ऑफ आॅनर” सँ सम्मानित कयल गेलाह। उपन्यासक अतिरिक्त हिनकर लिखित मैथिली नाटक “कंठहार”, “झुमकी”, “तेसर कनियां”, “अनमिल आखर” चर्चित अछि। महाकाव्य मे “अनंगकुसुमा”, “मणिकण” सहित अनेकों काव्य-संकलन सेहो प्रकाशित भेल। पुदीत साहित्य कें सेहो अनुवाद कयने छलाह। बंगलाक विभूति भूषण द्वारा लिखित “कोशी प्रांगणक चिट्ठी” कें बंगला सँ मैथिली मे अनुवाद विलक्षणताक प्रस्तुति वस्तुतः अत्यंत रोमांचकारी अछि। अंग्रेजी मे लिखल गेल “बंगला साहित्यक इतिहास” कें मैथिली मे अनुवाद कयने छलाह। डा0 मणिपद्म द्वारा लिखल गेल कथा “साहित्यकारक दिन”, “बालगोविन्द”, “प्रतिद्वन्दिता”, “अछिंजल”, “पोखैर खोर”, “धरतीक हाथ” खुब चर्चित छनि। एहिक अतिरिक्त “मिथिलाक बेटी”, “शास्त्र ओ शास्त्र” एकांकी मैथिली नाटक प्रमुख छनि। “कौशर” (कविता-संग्रह) मऽन कें हर्षित व उद्वेलित करैत अछि।
किछु पांती एहि प्रकारे अछि :
“दूर क्षितिज धरि
पसरल पसरल
कमल फूलल अछि
स्वर्ण परात मे
मधु बसात मे
झूमि रहल अछि
अरूण किरण के
शत् शत् चूमि रहल अछि …।।”
एहि कविताक पांती सुनितहिं परिषदक सभागार मे उपस्थित मैथिली साहित्य अनुरागी झूमि उठलाह।
1957 ई. मे कोलकाताक महाजाति सदनक प्रेक्षागृह मे केन्द्रीय सरकार द्वारा “अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन” केर आयोजन भेल छल आओर ओहि सम्मेलन मे तत्कालीन महामहिम डा0 राजेंद्र प्रसाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू समेत अन्य भाषाविद् विद्वान उपस्थित छलाह। ओहि सम्मेलन मे मैथिली भाषाक यथोचित स्थान नञि देखि सम्मेलन मे उपस्थित डा0 लक्ष्मण झा, प्रो. हरिमोहन झा एवं डा0 व्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ तत्कालीन प्रधानमंत्री पं नेहरू कें मैथिली पक्ष रखबाक लेल बाध्य कऽ देलखिन आओर डा0 मणिपद्म कें जखन मैथिलीक पक्ष रखबाक लेल मंच पर आमंत्रित कयल गेल, अंग्रेजी मे धाराप्रवाह देल गेल हुनक भाषण पं. नेहरू कें हतप्रभ कऽ देलक तथा टकटकी लगाय नेहरूजी मणिपद्म कें निहारैत रहि गेलाह। परिणामस्वरूप पं. नेहरू आधा सँ बेशी समय मैथिली विषय पर अपन वक्तव्य रखलथि।
एहि महान मैथिली विभूति कें परिषद शत्-शत् नमन निवेदित करैत अछि। एहि महान विभूतिक देहावसान 19 जून, 1986 मे भेल।
राजकुमार झा (बंबई सं पठाओल गेल लेख)