तात्विक विवेचनक बाद शिव शब्दक विविध अर्थ सोझाँ अबैछ: कल्याणकारी, मंगलकारी, शुभकारी ,ऊर्जादायी आ शक्तिदायी. हिनका औढरदानी कहल जाइछ. हिनका प्रति भक्तिक तादाम्य क्षणहि परिणामदायी होइछ. प्रांजल रूपेँ ब्रह्मक एहि कांति केँ “संहारक” मानल जाइछ, मुदा सनातनक सूक्ष्म दर्शन कहैछ जे एहि ठाम संहारक अर्थ कर्मवादी समरथ भक्त जखन समाजक लेल विध्वंशक रूप धरैछ त’ शिव ओकर शक्तिक नाश क’ एक अर्थ मे ओकर प्राणवायु केँ स्वच्छ बना दैत छथि, अर्थात ओकर भक्तिक बाट केँ अवरुद्ध कर’ बला अवरोधक तत्त्वक नाश करैत छथि.
हिनक शक्ति सर्वकामी आ सर्वगामी छनि, हिनका दुआरि पर सुर -असुर सँ ल’ क’ ब्रह्मज्ञानी मीमांसक वा चांडाल सभक मध्य कोनो भक्तिक अंतर नहि. ओना सभ धर्मक मे देवत्व सर्वानुगामिनी होइछ, मुदा शिवक शक्ति अदौ काल सँ सामाजिक न्याय वा सामाजिक अभियांत्रिकीक महत्तक परिचायक मानल जा सकैछ. फाल्गुन कृष्ण पक्षक चतुर्दशी तिथिक शिव आराधना केँ सनातन संस्कृति मे नित्य आ काम दुनू अर्थ मे पुनीत मानल जाइछ . एहि दिवसक शिव पूजन विशेष महत्व रखैछ.
शिव कुमार झा ‘टिल्लू’