मिथिला मिरर-डॉ.चंद्रमणि झाः मिथिलाक महाराज शक्र सिंह 1284 ई. सँ1296 ई.धरि राज कयलनि। एक समय अलाउद्दीन खिजली अपन सेनापति महिमशाह(मीर मोहम्मद) सँ कुपित भए महिमशाहक शरणदाता रणथंभौरक महाराज हम्मीर सँ युद्ध कयलनि। महाराज शक्र सिंह अपन अनुभवी सेनापति देवादित्य ठाकुर एवं सेनाक संग बादशाह अलाउद्दीन खिजलीक संग देलनि। यद्यपि खिजलीकेँ रणथंभौर पर 1301 ई. मे विजय भेटलनि मुदा,एहि प्रारंभिक चरण(1296ई.)क युद्ध मे सेनापति देवादित्य ठाकुरक रणकौशल एवं किलाबंदीक कला सं प्रभावित भए बादशाह खिजली द्वारा देवादित्य ठाकुर कें रत्नाकरक उपाधि सँ अलंकृत कयल गेल।
एहि सम्मान सँ उत्साहित म0 शक्रसिंह आ’ मंत्री रत्नाकर अपन दलबलक संग काशी मे गंगास्नान एवं दान-पुण्य कय जलमार्ग सँ सिमरिया अयलाह। एतए पुनि गंगा स्नान कय नवादा पहुँचि एक दिनक विश्राम कयलनि तथा निकुँज मे स्थापित भगवतीक पूजा-अर्चना कयलनि। ई कार्तिक कृष्ण पक्षक चतुर्दशी छल। महाराज शक्रसिंहक आज्ञा सँ एक दिन पूर्वहि संपूर्ण ग्राम दीपावली मनाय एहि दुर्गास्थान मे विजयोत्सव मनओलनि।
कहल जाइत अछि एहि विजयोत्सव मे महाराजक विश्वासपात्र सिपहसालार पघारी गामक चौधरी महावीर रहथिन। संयोग सँ महावीर हनुमानजीक जन्म सेहो कार्तिक कृष्णपक्षक चतुर्दशीकेँ मनाओल जाइत छल। तहिये सँ दरभंगा महाराजक किला मे,नवादा मे आ’ पघारी (बहेड़ी प्रखंड) मे द्विदिवसीय दीपावली मनाओल जाइत रहल अछि। एहि परंपरा सँ एहि दुनू गामक जमींदार लोकनिकेँ लाभ सेहो भेलनि। चतुर्दशीकेँ निज ग्राम मे आ’ अमावस्याकेँ गाम मे मलिकाइन आ’मौजे पर अपने दीयाबाती मनबैत रहलाह।