सृजन शेखर’क लिखल एकटा मार्मिक रचना ‘जिनगीक दस्तावेज’

    0
    325

    हऽम कनी तमसएऽल छी

    निन्न टूटल अखने तैं ओंघाएऽल छी

    केलौं  बहुत स्वाँग भऽ गेलौं निर्लज्ज

    देखलौं मुँह एना में तें कनी लजायल छी

    छोड़ू ओहि बात के दोसर कोनो बात करू

    टारि-टारि एहिना सच बिसराएऽल छी

    चलब ने अनचिन्हार बाट अन्हार राइत

    डरि-डरि एहिना डरे नुकाएऽल छी

    बचि-बचि के चलैत रहलौं जिनगी भरि

    सहेजलौं ने एक्कहु साँस तें खलियाएऽल छी

    लिखैत रहलौं जाहि हाथ सऽ जाली ख़त

    उसरै ने पुण्य काज तैं कँपकपाएऽल छी

    माँगैय के अछि आदत खोललौं ने बंद मुट्ठी

    दै के बेर तें कनी हिचकिचाएल छी

    हँसि ने पेलौं कानि ने पेलौं बनलौं बुधियार

    विदा के बेर तें आय नोरे नहाएल छी

    जिनगी के दस्तावेज़