सुहागिनक महत्वपूर्ण पावनिमे सं एक ‘बैरसाइत’ सं संबंधित शिव कुमार झा केर इ कविता

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    सौभाग्यक वियनिसंग वरत’र सुहागिनी !
    अखण्डित सेनुर सेंथु शोभि रहलि भामिनी
    शीतल पवन सूंघि वरपात सिहकै
    जड़ितर केसर कुमकुम धूपगुगुल महकै
    चहुँदिशि फुलायलि छथि कामिनी
    हे शिव चहुँदिशि फुलायलि छथि कामिनी !
    जेठक अमावस नव आशाक संगम
    बेटी सावित्रीके खोईंछ रहनि गमगम
    सभघर सजनि आल आसिनी
    हे शिव सभघर सजनि आल आसिनी !
    यमक फेर मिथिला संग क’तहु ने आबै
    कोनो ने पुरुख सोन सीता बनाबै
    सदति कंत संगमे सुहासिनी
    हे शिव सदति कंत संगमे सुहासिनी !
    एहने आशीष “शिव” हीया फुरायल
    रहनि बहिनबेटी के’ आत्मा जुरायल
    दूर रहय कालकाँट दामिनी
    हे शिव दूर रहय कालकाँट दामिनी !