घाट पर जातिमे उपरौंझ, मकड़ी, फाँक आ पुरनिवाली मंचित

    0
    418

    दिल्ली, मिथिला मिरर-मनीष झा “बौआभाइ: १४ जनवरी २०१७ क’ कला-संगीतमे प्रशिक्षण आ प्रदर्शनक सभस’ पैघ गढ़ संगीत नाटक अकादमी (एन.एस.डी.) दिल्ली केर सम्मुख सभागार मे मैलोरंग रेपर्टरी प्रस्तुत नाटक “घाट पर जाति” केर सफल मंचन भेल. साहित्य अकादमी स’ पुरस्कृत मैथिलीक प्रसिद्ध लेखक प्रदीप बिहारी केर चारि गोट कथा क्रमशः उपरौंझ,मकड़ी,फाँक आ पुरनिवाली जेकि स्त्री विमर्श पर आधारित छल, केर कथामंचन कएल गेल. ५५ मिनट केर अवधि तक मंचित होइबला ई नाटक एक्कहि दिनमे दू खेप मंचित भेल. नाटकक मंचन हेतु चारू कथाक संग्रह मे मैलोरंग समूहक एक प्रयोग जेकि स्त्रीक विभिन्न परिस्थितिकें उजागर करैत अछि ओ नाटकक विषय-वस्तुकें समकालीन रूपरेखामे प्रस्तुत करबाक एक साहसिक प्रयास सेहो केने अछि.

    एहि चारू नाटकमे स्त्रीक विभिन्न रूपक चरित्र-चित्रण भेल अछि. उपरौंझ मे माए-बेटी केर पर-पुरुषक प्रति समान आकर्षण जत’ एक-दोसराकें प्रति घृणा बोध करबैछ ओत्तहि माए अपन बेटीक भविष्य मे साँप-बिच्छू सन असामाजिक तत्वक हाथ स’ दूर रखबाक हरसंभव प्रयास माइअक अपन बिताओल भोगविलासी समयक पश्चातापक सेहो बोध करबैछ. मकड़ी कथामे नायिकाक स्वामिक मृत्योपरांत सिलाइ-कढ़ाइ क’ अपन जीवनयापन करब आ सामान्य जीवन जीबाक क्रममे ओकर रूप-सौन्दर्य आ जुआनी पर मोहित युवक द्वारा ओकरा संग दाम्पत्य जीवनक पुनर्प्रारंभ एक उमेद जगबैछ मुदा नवस्वामिक अत्यधिक पिआक लक्षण ओकरो जीवनक अंत क’ दैछ संगहि नवजात शिशुक मृत्यु पुनः ओकरा जीवनकें ओएह पुरान दिन दिस धकेलि देइत अछि जत’ स’ नवकिरणक आस जागल रहैक.

    एक बौक आ अनाथ बच्चाकें लालन-पालनमे वात्सल्य्ताक अगाध सीमा अनचोकेमे कामुकतामे परिवर्तित होइत नायिकाकें स्वयं अपराधबोध करबैछ आ स्वयं नजरि उठा तकबाक ग्लानि बौका स’ दूर करैत चल जाइछ आ एहि बात स’ बौकाक गृहत्यागब नायिकाकें मथसुन्न बना जीवन भरि कचोटबाक विकल्प मात्र छोड़ि जाइछ. फाँक कथा प्रेम आ दायित्वक मध्य एकटा एहेन फाँक पर आधरित अछि जकरा केन्द्रमे सारि आ बहिनोइक अवैध सम्बन्ध अछि. अविवाहित सारिक गर्भधारण एक एहेन भयानक विषय बनि जाइछ जे सामाजिक प्रतिष्ठा आ गर्भपलित शिशु केर मध्य असमंजस सन स्थिति ठाढ़ क’ दैत अछि. प्रेमी-प्रेयसीक मध्य अनेकानेक चिंतन-मंथन केर उपरान्त गर्भपात (भ्रूणहत्या) कराओल जाइत अछि आ एहि ठाम एक अजन्मा शिशु पर सामाजिक प्रतिष्ठा केर विजय स्थापित होइत अछि.

    पुरनिवाली कथा पुरुष समाज पर एक पैघ प्रश्न ठाढ़ करैत अछि. कथाक माध्यम स’ ई स्पष्ट होइत अछि जे समाज बाँझ स्त्रीकें उजागर करबामे कोनो संकोच नैं करैछ आ ई शब्द समाजक शब्दकोषमे बेझिझक प्रयोग कएल जाइत रहल अछि मुदा पुरुषक नपुंसकता सामजिक स्तर पर लाजक विषय अछि आ बाँझपन स’ बेसी नपुंसकताकें दबेबाक प्रयास कएल जाइत अछि. एक दाम्पत्य जीवन जेकि सुखमय अछि मुदा एक बच्चा बिना सुन्न सन. दुनू दम्पतिकें इलाजक क्रममे आर्थिक ओ मानसिक रूप स’ हताश क’ देने अछि. चिकित्सक द्वारा पुरुषक कमी स्पष्ट भेलाक बाद स्त्रीक मोन आर विचलित भ’ जाइछ आ स्त्रीकें बच्चाक ललसा एक अकल्पनीय बाट दिस ल’ जेबा लेल आकर्षित क’ लैत छैक. चारू नाटककें ज’ एक-दोसरा स’ जोड़ि क’ देखल जाए त’ नारीक चरित्रमे घृणा,सहानुभूति,विवशता,वात्सल्यता आदिक सामंजस्य भेटैत अछि.

    एहि नाटकमे नेपाल आ भारतक मध्य बेटी-रोटी सनक प्राकृतिक सम्बन्धकें सामंजस बना सहजता स’ प्रस्तुत कएल गेल अछि. लेखकक कलम एहि बातकें सेहो अंकित करैत अछि जे आमजनक वास्ते भारत-नेपाल कोनो दृष्टिकोण स’ फराक देश हेबाक प्रश्नें नैं ठाढ़ करैछ. मंच पर अपन निस्सन ओ दमदार उपस्थित द’ जे रंगकर्मी एकरा सफल बनौलनि ओ लोकनि छथि-ज्योति झा, अमरजीत राय, मुकेश झा, पूजा प्रियदर्शनी,ऋतुराज, रमण कुमार आ नितीश कुमार. निर्देशन- प्रो. देवेन्द्र राज अंकुर, सह-निर्देशन- डॉ. प्रकाश झा. पार्श्व मंच पर संगीत-दीपक ठाकुर, प्रकाश-श्याम सहनी आदि. उक्त कार्यक्रममे धीरेन्द्र प्रेमर्षि, प्रदीप बिहारी, सविता झा खान आ देवेन्द्र राज अंकुरक आतिथ्य आ मैलोरंग प्रस्तुत ई नाटक एन.एस.डी केर सम्मुख सभागारमे चारि चान लगबैत मैथिलीक झंडा एक बेर फेर से फहरेबामे सफल रहल.