धूमधाम स होयत भगवान धन्वन्तरिक पूजन

    0
    340

    दरभंगा,मिथिला मिरर-सोनू मिश्रः धनतेरस पाबनिक ओरियान भऽ चुकल अछि। लोक धूप-दीप कीनि घर आनि लेने छथि। धनतेरस पाबनिकेँ ब्रह्माण्डक पहिल चिकित्सक  धन्वन्तरीक स्मरणमे मनायल जाइत अछि, किएक तँ वस्तुत: सभसँ पैघ धन स्वास्थ्य होइत अछि। मुदा प्रश्न इहो उठैत अछि जे जखन शरीरे सभसँ पैघ धन होइत अछि तँ कोनो ने कोनो दबाई खेबक चाही नञि कि धातुक बर्तन खरीदक चाही।
    कहल जाइत अछि जे आश्विन मासक तेरहम दिन समुद्र मन्थनक दौरान ब्रह्माण्डक पहिल चिकित्सक भगवान धन्वन्तरी हाथमे अमृत कलश लऽ प्रकट भेल छला। एहन मानल जा रहल अछि जे आजुक दिन धातु घर अनबासँ ओहि संग अमृतक अंश सेहो घर आबि जाइत अछि आ नीक स्वास्थ्यक गारण्टी भेटि जाइत अछि।

    तेँ  धनतेरस दिन दबाइ नञि बर्तन कीनल जाइत अछि। किएक तँ दबाइसँ रोगक तात्कालिक समाधान होइत अछि जखन कि अमृत घर अनबासँ  रोग भागि जाइत अछि। कतेको लोककेँ  एहि सभ तरहक बातपर विश्वास नञि होइत अछि, मुदा भागलपुर स्थित मन्दार पर्वतपर देखल जा सकैत अछि जे समुद्र मन्थन काल भेल रस्सी चेह्न आइ धरि विद्यमान अछि। धनतेरसक सन्दर्भमे एकटा किंवदन्ती कहल जाइत अछि जे  राजा हिमाकेँ एकटा सोलह बरखक पुत्र छल। जे जन्म कुण्डलीक हिसाबेँ अल्पायु छला। जिनक  मृत्यु विवाहक चारिम दिनक बाद साँप कटबासँ  हेबाक छल। मुदा विवाहक चारिम दिन राजकुमारक पत्नी राजकुमारकेँ कथा- कहानी, गीत सुना भरि राति सुतय नञि देलनि। संगहि राजकुमारक चारू कात दीप प्रज्ज्वलित कऽ देलनि आ शयण कक्षक बाहर सोन-चानीक सिक्काक ढ़ेरी लगा देलनि। विधिक विधानक मोताबिक नीयत समयपर नागिनक रूपमे यमदूत एला, मुदा सोन-चानीक चमकबा कारणेँ नागिनक आँखि चोन्धिया गेल आ ओ आगाँ नञि बढ़ि ओतहि बैसि गेल। किएक तँ वैज्ञानिक तथ्य अछि जे साँप बहुत बेसी तेज रोशनीमे नञि देखि पबैत अछि। आ एहि तरहेँ राजकुमारक पत्नी अपन चलाकी आ कार्य कुशलतासँ ओहि मनहूस घड़ीकेँ टारि अपन पतिकेँ बचा लेलनि।  तेँ आजुक राति यमदीपदान केर रूपमे मनायल जाइत अछि आ भरि राति दीप जरा बाहर राखि देल जाइत अछि।

    कारोबारीक लेल एहि पाबनिक अछि विशेष महत्त्व  कातिक मासक कृष्ण पक्षक त्रयोदशीसँ धनतेरसक पूजाक संगहि दियाबाती शुरू भऽ जाइत अछि। कारोबार केनिहारक लेल एहि पाबनिक बहुत बेसी महत्व अछि। लोकक मानब अछि जे एहि दिन लक्ष्मीक पूजासँ सुख-समृद्धि, खुशी आ सफलता भेटैछ। कहल जाइत अछि जे धनक मतलब समृद्धि आ तेरसक मतलब तेरहम होइत अछि। एहि पूजाक संग दियाबाती शुरू भऽ जाइत अछि। घर, कार्यालय, दोकान प्रतिष्ठान सभ ठामक सफाइ कयल जाइत अछि आ इजोत, फूल, रंगोलीसँ सजायल जाइत अछि। कतेको लोक घरक दुआरिपर चावलक चिक्कससँ रंगोली सजबै छथि आ लक्ष्मीक स्वागत ओरियानमे लागि जाइत छथि। एहि अवसरपर रंगोलीसँ घरक भीतर धरि लक्ष्मीक छोट-छोट पैरक चिन्ह बनायल जाइत अछि। सन्ध्याकाल 13 टा दीप जरा लक्ष्मी पूजा कयल जाइत अछि। मानल जाइत अछि जे एहि दिन लक्ष्मी पूजा करबासँ समृद्धि, खुशी आ सफलता भेटैत अछि। कहल जाइत अछि जे कारोबारीक लेल ई दिन खास महत्व रखैत अछि। एहि दिन बेसी लोक वस्तु कीनैत छथि, जाहिसँ साल भरिक कमसँ कम 40 सँ 50 फीसदी व्यवसाय भऽ जाइत अछि। बनिञा-महाजनकेँ एहि दिनक बहुत प्रतीक्षा रहैत अछि। बजारमे भोरहिसँ सोन-चानी, बर्तन कीनबा लेल चहल-पहल शुरू भऽ जाइत अछि। भूमि, कार, निवेश आ नव उद्योगक लेल सेहो आजुक दिनकेँ शुभ मानल जाइत अछि।

    दक्षिण भारतमे एहि पाबनिक अवसरिपर गायकेँ  खूब सजायल जाइत अछि आ ओकर पूजा कयल जाइत अछि। गायकेँ लक्ष्मीक अवतार मानल जाइत अछि। उत्तर भारतमे बेसी लोग द्रव्य-जात कीनबापर जोर दै छथि। नव बर्तन आ गहनासँ लक्ष्मी पूजा करैत छथि।

    (उक्त समाद पूर्वमे दरभंगा सं प्रकाशित होइवला दैनिक मैथिली अखबार मिथिला अवाज मे प्रकाशित भय गेल अछि)
    प्रस्तुति : अमलेन्दु शेखर पाठक

    साभारः (मैथिली न्यूज ब्लॉग स्पॉट)