प्रकाशे वसति लक्ष्मी, असत्य पर सत्यक विजय थिक – दीपावली

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    दरभंगा,मिथिला मिरर-डॉ.चंद्रमणि झाः कहल गेल अछि- प्रकाश ईश्वरक छाया थिक,सत्यक संकेत थिकः-Light is the shadow of God and it is the symbol of the truth.जतय प्रकाश अछि ओतहि विकास अछि आ’ बिना लक्ष्मी(धन)केँ विकास संभव नहि अछि। लक्ष्मीक आसन विकसित कमल अछि जे प्रकाश पाबिकेँ विकसित होइछ।तेँ प्रकाश आ लक्ष्मी मे अन्योनाश्रय संबंध अछि। प्रकाशे वसति लक्ष्मी।

    ज्योति पर्व दीपावली अंधकार पर प्रकाशक,असत्य पर सत्यक,अधर्म पर धर्मक,दुःख पर सुखक विजय पर्व थिक। दीपावली वा दीयाबाती प्रत्येक वर्ष कार्तिक मासक कृष्णपक्ष में अमावश्याक दिन मनाओल जाइछ।एहि पर्वक अवसर पर घर-आँगन, दलान,चौक-चौराहा सबकेँ साफ-सुथड़ा कय गोधूली बेला में अनंत प्रज्वलित दीपक पाँति सजाकs लोक एहि पर्व केँ मनबैत छथि आ’ तेँ एहि पर्व केँ दीपावली कहल जाइछ।

    शरद् ऋतुक प्रमुख पर्व दीपावलीक संबंध मे नाना प्रकारक धार्मिक एवं ऐतिहासिक जनश्रुति प्रचलित अछि- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चौदह वरखक वनबास बितओलाक बाद एवं रावण कुल संहारक उपरांत महाशक्ति मैथिली एवं अनुज लक्ष्मणक संग कार्तिक अमावश्याकेँ अयोध्या घुरि अयलाह।अपन राजा राम केँ देखि सकल प्रजाक मन-मयूर नाँचि उठल आ’ ओ लोकनि उल्लास मे घर-घर दीपक आवली प्रज्वलित कय दीपावली सन ज्योति पर्वक आयोजन कयलनि-

    जहिया घर घुरि अयला राम।

    सगर नगर आनंदक उत्सव,

    दीपोत्सव अभिराम।

    जनतब अछि जे आनंदातिरेक मे मनुख विभिन्न प्रकारक सुस्वादिष्ट भोजन करैछ आ’ नाना प्रकारक ताल आ ध्वनिक उत्पादन कय हर्षक अभिव्यक्ति करैछ।संभवतः राबिश पटाखा छोड़बाक क्रम तहिये सँ प्रचलित भेल जकर विकृत रूप प्रचलित अछि जे परिहार्य अछि। कार्तिक अमावश्याक एक दिन पहिने श्रीकृष्ण दुर्दांत नृशंश लोकभयकारक राक्षस नरकासुर केँ वध कयलनि जाहि सँ प्रजा मे आनंदक घन उमड़ि आयल आ दोसरहि दिन संपूर्ण प्रजाज्योतिपर्वक आयोजन कय अपन उल्लास प्रकट कयलनि।

    सहस्रबाहु राक्षसक संहार कय महाकालीक क्रोध शांत नहि भेल।हुनकर देह सँ निकलैत क्रेधाग्निक ताप सँ धरातल भस्म होमय लागल।पृथ्वी पर हाहाकार मचि गेल।करुणानिधान महादेव महादेवीक क्रोधक शमनार्थ महाकालीक गंतव्यक मार्ग बीच चित्त भए लेटि गेलाह।भगवतीक पैर शिवक छाती पर पड़ल,नींचा देखलनि तs साक्षात् शिवकेँ अपन पदतल में पाबि लपलपाइत जिह्वा बाहर कय पश्चाताप कयलनि आ’ माताक क्रोध तत्काल शाँत भए गेल।लोक आनंदहि झूमि उठल आ’ महाकालीक जयजयकार करैत घर-घर ज्योति पर्वक आयोजन कय महाकालीक पूजा प्रारंभ कयलनि। इत्यादि।

    कार्तिक मास कें धर्म मास कहल जाइछ।कार्तिक अमावस्याक विशेष महत्व अछि।ई दिन भारतक एक सँ एक महान धार्मिक आ’ आध्यात्मिक विभूतिक जन्म आ निर्वाण सँ जुड़ल अछि।कहल जाइछ जे एहि दिन स्वामी शेकराचार्यक चितारोहित निर्जीव शरीर मे पुनः प्राणक संचार भेल।जैन मतक अनुसार आइये भगवान महावीरक निर्वाण भेल छल।आर्य समाजक प्रवर्तक स्वामी दयानंदक निर्वाण तहिना स्वामी रामतीर्थक जन्म आ निर्वाण दुनू कार्तिक अमावस्ये केँ भेल छल।

    लोकजीवन मे एहि पर्वक अपन तार्किक महत्व अछि।वर्षा ऋतुक बाद शरद् ऋतुक आगमन होइछ।बरसातक मौसिम मे असंख्य कीट-फनिगा जन्म लैत अछि।एक तs बरखाक खिच-खिच दोसर कीड़ा-मकोड़ाक प्रकोप सँ लोक फिरीशान भए जाइछ।कार्तिक अमावश्याक आगमन तक बरसातक अंत भए जाइछ आ’ धानक लहलहाइत फसिलक शीश पाकिकेँ सद्गुणी मानव जकाँ झुकि जाइछ।अपन तैयार फसिलकेँ देखि किसान आह्लादित होइत छथि आ’ घर-दरबज्जा,नाला-सड़क इत्यादि केँ साफ-सफाइ कय अनगिनत दीपक आवली सजाय दीपावली पर्व मनबैत छथि आ’ पूर्ण मनोयोग सँ महालक्ष्मीक आह्वान करैत छथि।

    शुभ कार्यक प्रारंभ गणेश-पूजन सं कैल जाइछ।किछु लोक मटिया तेलक डिबिया जरबैछ जे वातावरणकेँ दुषित करैछ।ई स्वास्थ्यक लेल हानिकारक होइछ।दीप सरिसो,तिल,घीक जरयबाक चाही,मोमबत्तीक उपयोग सार्थक अछि।आब तs विद्युतक प्रकाश सँ पूरा नगर जगमगा जाइछ मुदा,ठीक दीपावलीक राति विद्युतक विलोपन होयबाक संभावना रहैछ तेँ अपन तैयारी सेहो आवश्यक होइछ। व्यापारीलोकनि आजुक दिन गणेश-लक्ष्मीक पूजा कय नव खाता-बही प्रारंभ करैत छथि।

    मिथिला मे दीयाबातीक दिन घर सँ बाहर ठाँव-पिठार कय ओहि पर अइपन तैयार कय पल्लवयुक्त मंगल-कलश (पुरहर) राखल जाइछ।घरक अभिभावक ऊक फेरैत घर सँ ज्योतित कलशकेँ नाँघि  “दरिद्रा बाहर जाउ” कहैत बाहर जाइत छथि  आ’ पुनः “अन-धन लक्ष्मी घर आउ” कहैत ओही कलश केँ नाँघि घर अबैत छथि।ई क्रम तीन बेर चलैत अछि।पुन- सपरिवार दीपोत्सव मनबैत लक्ष्मीक आराधना करैत छथि-

                           “सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्वदुष्टनयंकरी

                           सर्वदुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।“

    तहिना विघ्नविनासक गणेशक अर्चना करैत छथि-

                           “ एकदेत गजवदन गुरू धूमकेतु विघ्नेश

                            लंबोदर शुभ कार्य मे होउ सहाय गणेश।।“

    एहि महापर्वक एकटा दुःखद प्रसंग सेहो उल्लेखनीय अछि।जुआरी लोकनि जुआ खेलिकय तs चोर चौर-कर्म सँ अपना घर अन-धन लक्ष्मी अनबाक कुत्सित प्रयास करैत अछि जे बहुत दुःखद अछि।एहितरहक मनोदशा अज्ञानता सँ उपजैत अछि।मनुष्य केँ सत्कर्म सँ धनेपार्जन करबाक चाही।कर्मठ पुरुष किन्नहु चोर आ’ भिखारि नहि भए सकैछ।अपन भुजबल-बुद्धिबल सं धनोपार्जन कय यशस्वी बनि मानव जीवन केँ सार्थक करबाक चाही।

    कर्मक दिशाक ज्ञान नहि भए रहल अछि तs बुझू जे अज्ञानक अंधकार मे डूबल छी।तकर निराकरणक सहज उपाय अछि अपन अंतरात्मा सँ अपन कमी पुछू आ’ जीवनकेँ ज्योतित करबाक हेतु बुद्धिदाता गणेस आ’ महालक्ष्मी लग कर जोड़ि ठाढ़ भए विनती करिअनु-“तमसो मा ज्योतिर्गमय।“