मैथिल मिथिला ओ मिथिलांचल
एक दिन छल सुदृढ़ प्रदेश
आदिशक्ति जगदम्बा सीता के
अही धरती पर भेलैन प्रवेश ।
के नहि ऐलाह अही धरती पर
किनकर दिय उदेश
विश्यायापि राजा जनक
छलाह एतय नरेश ।
विद्यापति महान कवि
कालिदास विद्वान
मंडन मिश्र के अही धरती पर
बहुत पैघ अहसान ।
माँ काली के कालिदास सं
अद्भुत भेलैन मिलान
हमरा अहॉ में अखनो तक
नहीं अछी पहचान ।
धन्य धन्य ओ मिथिला बासी
धन्य अहॉ के परिवेश
धोती कुर्ता ओ चादर
सुर सं भेटल अछी भेष ।
सूखा भूखा ग्राशित केने छैक
लोक जा रहल कूदेश
अहीं बताबु ओ मैया
आब ककरा दीयौ संदेश ।
आबो आबू हे जगदम्बा
हरू सभक क्लेश
अहीं के धरती कानि रहल अछी
कखन करब प्रवेश ।
ज्ञानी छथि एतय के लोक
पर बसै छथ कूदेश
अपना ज्ञान के बेच बेच क
भरै छथ विदेश ।
जागू जागू मिथिलावाशी
आब नहीं रहत अबसेश
मातृभूमि के मान बढ़ा क
दीयौ दुनिया के ठेश ।
हे माँ काली हे माँ सीता
क्या नींद भेल विशेष
जन्मभूमि उद्धार करू माँ
नहीं रहत किछ शेष ।
हीरापति के विनय सुनि क
जल्दी करू प्रवेश
देर करब त हे जगदम्बा
नहि भेटत कोनो उद्देश ।
पंडित अर्जुन झा