भाई-बहिनक अनूपम पावनि ‘भरदुतिया’ विशेष, अवश्य पढ़ी

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    दिल्ली-मिथिला मिररः भाई-बहिनक प्रेमकऽ प्रतीक भरदुतिया (भ्रातृ द्वितीया) कऽ पर्व दीवाली कऽ दू दिनक बाद, कार्तिक मासक शुक्ल पक्ष केर द्वितीया तिथि कऽ मनाओल जाइत अछि। एही पर्व मे बहिन भाईकें निमंत्रण दऽ अप्पन घर बजावैत छथि। अरिपन बना कऽ पिड़ही पर भाई केँ बैसायल जाइत अछि। ललाठ पर पिठार आ सिंदुरक ठोप कऽ, पान सुपारी भाई केँ हाथ में दकेँ बहिन एही पन्ती केँ उचारण करैत छथि ‘गंगा नोतय छैथ यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ जहिना जहिना गंगा-यमुना केँ धार बहय, हमर भाय सबहक औरदा बढ़य’ आ हुनक दीर्घायु जीवनक कामना यमराज सँ करैत छथि, फेर भाई केँ मुंह मिठ कैल जाईत अछि। भाई अप्पन सामर्थ्यक अनुसार बहिन केँ उपहार प्रदान करै छैथ। कहल जाईत अछि जे यमराजक बहिन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया केँ हुनका निमंत्रण देने छला। ताहि सँ यमराज प्रसन्न भेल छला। तहिआ सँ इ प्रथा चली रहल अछि। मिथिलामे इ पर्व घरे-घर उल्लासक संग मनाओल जाईत
    अपना हिन्दु धर्ममे इ खिस्सा प्रचलित अछि कि यम केर बहीन यमुना छलिह, यमुना अपन भाई के कतेको बेर अपना ओहिठाम एबाक निमंत्रण पठौलनि मुदा संयोग वश यम नहीं जा पबैत छलाह आखिरकार एक दिन यम अपन बहिन यमुनाक ओहिठाम पहुँचलाह आ ओ दिन कार्तिक शुक्ल द्वितियाक छल। यमुना अपन भाई के खूब स्वागत सत्कार केलनि और स्वयं भांति-भांति के व्यंजन बना अपन भाई यम के भोजन करेलन्हि, यम प्रसन्न भए यमुना के वर मांगबाक लेल कहलनि। बहिन भाई सौं वरदान मंगलैन कि जे भाई अपन बहीन के घर अहि दिन जेताह हुनका नरक या अकाल मृत्यु प्राप्त नहीं हेतनि, ताहिया सौं इ दिन भरदुतिया के रूपमे मनाओल जैत अछि।
    ओना त कार्तिक शुक्ल द्वितया कऽ समूचा देशमे भाईके पर्व मनाओल जाइत अछि कतोहू भाई दूज, भैया दूज त कतहू भाई फोटा आ किछू और मुदा मिथिलामे अहि पर्व के भरदुतिया कहल जैत अछि। अहि दिन भाई अपन बहीन के ओहिठाम जैत छथि। जकरा अपना मिथिलामे नोत लेनाई कहल जैत अछि। अहि दिन सब बहीन के अपन भाइ के आयबाक इंतजार रहैत छनि। बहीन अपना आंगन मे अरिपन दए भाई के लेल आसन बिछा, एकगोट पात्र में सुपाड़ी,लौंग, इलाइची, पानक पात, कुम्हरक फूल,मखान आ सिक्का भरि रखैत छथि. संगहि एक गोट बाटी में पिठार, सिन्दूर और एक लोटा जल सेहो रखैत छथि.
    भाई अप्पन दुनु हाथ के जोइड़ आसन पर बैसैत छथि और बहीन हूनका हाथ पर पिठार लगा हाथ में पान, सुपाड़ी इत्यादि दे नोत लैत छथि और बाद में ओकरा ओहि पात्र में खसा हाथ धो दैत छथीन्ह. एवं प्रकार सौं तीन बेर नोत लेल जैत अछि और भाई के पिठार आ सिन्दूरक तिलक लगा मधुर खुआओल जैत अछि . यदि भाई जेठ भेलाह ते हूनकर पैर छूबि प्रणाम करैत छथि और छोट भेलाह ते भाई बहिनक पैर के छूबि प्रणाम करैत छथि। भाई बहिनक प्रेमक अद्भुत पर्व थिकै भरदुतिया।
    गंगा नोतइ छथि जमुनाकंे आ हम नोइत छी अपन भाईकंे।। जहिना गंगा जमुनाकंे धार बहइ ओहिना हमर भाई के अउरदा बढ़ए। समस्त भाई बहिन के मिथिला पावनि भरदूतियाक हार्दिक मंगलकामना।
    धीया निमंत्रण देलनी भैया,
    पिठारक चानन पिसी कअ,
    छोटका भैया हर्षित भेला,
    भउजी सुतली रुसी कअ।।

    भरदुतिया सन् सुंदर पाबनि,
    हाथ सुपारी पान छई,
    अरुदा बढ़ले भैया केर आ,
    बहिनिक बढ़ले शान छई।।

    गोबर निपल आँगन चमकय,
    कुम्हरक फूल मटकुरी म,
    भउजीक भइया रस्ते रहला,
    फंसला कोनो जरूरी में,
    धीया निमंत्रण देलनि भइया।।
    दुतिया चन्दा आई उगल छई,
    हर्षित सकल जहान गे,
    बढ़य मान सदा भइया के,
    बहिना के अरमान गे।।

    कातिक बहिना बजरी कूटू,
    भरि टोलक आय जुटान गे,
    मणि मानय जे मिथिला में,
    सब दिन पर्व चुमान गे,
    धीया निमंत्रण देलनि भइया।।
    नोटः अहि खबैरकें लेखक के थिकाह अहि बातक जानकारी मिथिला मिरर लग त नहि अछि, कारण इ वाॅट्सअपकें माध्यम सं मिथिला मिरर तक पहुंचल अछि। मुदा अहिमे यथोचित संशोधन मिथिला मिररक टीमक अछि। रचनाकारकें धन्यवाद, समस्त मिथिला सह देशवासीकें मिथिला मिररक दिस सं सेहो भरदुतियाक हार्दिक बधाई आ मंगलकामना।