सगरे मिथिला भोगि रहल अछि अगिलग्गी के मारि
सोचि लेने छथि अग्निदेव हम एकरा दीयै उजारि
नित दिन लागै आगि घर मे जरि रहलै गामक गाम
मिझबय मे लोकक माथा सँ छुटि रहलैया घाम
घर जरैया चौर जरैया जरि रहलै माल मवेसी
अनधन लक्ष्मी जा रहली कत्तहु कम कत्तहु बेसी
रउदा प्रचंड पछबा उदंड मौसम के छै मनमानी
धार पोखरि सब सुखा रहल छै नहि भेटय कत्तहु पानी
पूर्वज सब पूजय छलाह सब गामक डीहवार
गँउआ घरुआ एक मत भय नीपइ छल चिनवार
आब लागल सब अपना अपनी मे राखय के दोसरक चिंता
मुँह ताकि रहल सब एक दोसरा के आयल छैक अदिनता
मिलिजुलि रहियौ सब समाज मे मणि छी मानव संतान
दस के लाठी बोझ बनबियौ समस्या के हैत निदान ।।
मणिकांत झा, दरभंगा
फोटोः साभार भरत भूषण’क फेसबुक सं