विकासशील भारत मे मिथिलाक स्थिति

    0
    337

    भारत कृषि प्रधान देश अछि। एहि मे मिथिलांचलक विशिष्ट अस्तित्व अछि । कृषि हेतु उपयुक्त खेत अछि । पर्याप्त श्रमिक छथि, परन्तु समुचित सिंचाई, आधुनिक यंत्र एवं सामग्रीक अभाव मे अत्यधिक ऊर्वरा सम्पन्न पवित्र भूमि मिथिला अपन उचित ऊपजा सँ वंचित अछि। मिथिलांचलक आठ प्रतिशत् भूमि मे सिंचाईक नियमित सुविधा अछि । मौसमी फसल, जे मात्र मानसुन पर आधारित अछि, ओकर रक्षो मात्र संभव नहि भऽ सकल अछि । बाढ़िक विभीषिका आ अनावृष्टिक विचित्र प्रकोप सँ रुग्ण मिथिलांचलक कृषि-प्रणाली सतत् क्रंदन करैत रहल अछि आ मिथिलांचलक 72 प्रतिशत जनताक जनजीवन अस्त-व्यस्त अछि । भारतीय एवं प्रान्तीय सरकारक उत्साहबर्द्धक कार्यक्रम मात्र सरकारी फाईल मे दबल रहैत अछि । क्यो कत्तौ नहि, इएह कृषक वर्गक आवाज छनि । देखल गेल अछि जे मिथिलांचल में बाढ़ि सँ जे विभीषिका मधुबनी, समस्तीपुर, दरभंगा इत्यादि अन्यान्य क्षेत्र मे देखब प्रारंभ होइत अछि तकर आवृतिक चक्र सामान्ये अन्तराल पर दोसर, तेसर, चारिम, पाँचम आ कत्तहुँ छठमो खेप जन- जीवन कें त्रस्त कऽ दैत अछि । के बरका आ के छोटका, के महत्तवर आ के बेगार, के बखारी बला आ के भूमिहीन सभ एक्कहिंठाम चित्त । सभ समान रुपें निरुपाय, आश्रयविहीन आ हताश । अवग्रह मे जान बचेवाकाल के कतबाकाल समाजवादी, साम्यवादी, आदर्शवादी वा समदर्शी रहैत छथि से निर्धारण करब असंभव नहिं तऽ महाकठिन अवश्ये भऽ जाइत अछि, हेतुए जे सामाजिक ‘कम्प्लेक्स’क इजोत एहि अन्हेर मे स्वतः विलुप्त भऽ जाइत अछि तथा प्रलयक अन्हरगुप्पी मे सभहक स्वरुप एक्कहिं रंग लक्षित होइत अछि । एहि व्यथा-कथाक मुदा एकटा एहनो पक्ष छैक जकरा समुचित बिम्ब आ दृष्टिभंगिमा सँ देखला सन्ता सहजहिं स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे बाढ़िक समय समस्त मिथिलांचल कें समग्र भावें एकजुट भऽ एकताक बलें निदान, समाधान एवं उद्धारक हेतु सचेष्ट आ उन्मुख देखल जाइत अछि । यदि मिथिलांचलक कतिपय अनिवार्य समस्याक समाधानक निमित्त एहने समवेत प्रयास कयल जाय, समन्वित भंगिमा राखल जाय आ सामूहिक स्वर गुंजित- अभिगुंजित हो तऽ रंचमात्रहुँ संदेह नञि जे दिल्ली चौंकत आ पटना ताकत मिथिलांचल दिश । शोषण, बौंसव आ परतारनाइक प्रक्रियो बन्द होयत तत्क्षण आ स्वतः ।

    कृषि पर आधारित उद्योग जे कि मिथिलांचलक स्वाबलंबनक परिचायक रहल अछि ओ थिक – खादी ग्रामोद्योग, चीनी आ पेपर मिल । जाहि मे मात्र खादी ग्रामोद्योग टा अपन अस्तित्व कोनो तरहें बचौने अछि । चीनी उद्योग मृत्यु सज्जा पर पड़ल अछि आ संगहि देहाती डाक्टर सदृश सरकारक उचित ईलाज मे अपन अंतिम सांस गीनि रहल अछि । बचल पेपर उद्योग, एहि संबंध मे इएह बुझना जाइत अछि जे सरकार नञि तऽ एकर दाह-संस्कार करैत अछि आ नञि अमृत प्रदान कय एकरा पुर्नजीवित करबाक कोनो योजना बनवैत अछि । मिथिलाक माईट-पाईन पर उद्योगक ई दुर्दशा लज्जास्पद अछि । स्वo ललित बाबूक सुप्रयास सँ मिथिलाक कला एवं गृह उद्योग विदेशी बाजार मे पहूंचल, परन्तु वर्त्तमान सरकार एकरा उत्साह प्रदान करबाक हेतु कोनो नवीन योजना नहिं बनौलक अछि । बुझना जाइत अछि विश्वविख्यात मिथिलाक कला पर कुदृष्टि पड़ि गेल हो ।

    काज अनेकों अछि । साहित्य अकदमीक स्वेच्छाचारिता एवं मैथिली प्रतिनिधिगणक संग अस्तित्वविहीन प्रतिनिधित्वक कुचक्र, मैथिली अकादमी द्वारा प्रचुर मात्रा मे मैथिलीक पुस्तक प्रकाशनक हेतु अरुचिक भाव, दरभंगा आकाशवाणी केन्द्र परिचालन मे मैथिलीक प्रशारण मे प्रचुरताक कमी, मिथिला विश्वविद्यालय मे रवीन्द्र भारती, कोलकाता सदृश विद्यापति संगीत आ मिथिलांचलक ललित कलाक स्वतंत्र निकाय व्यवस्थाक अभाव, प्राथमिक स्तर पर मैथिली माध्यम सँ मिथिलांचल मे पढ़ाईक अनिवार्यता मे टाल- मटोल प्रवृति, पत्र-पत्रिकाक अभाव तथा आन्दोलनात्मक जागृति-प्रवृतिक अभाव । कवि आ साहित्यकारहुं कें क्रान्तिकारी रचना धर्मिता सँ प्रेरित होयब आवश्यक । भाषाक क्षेत्र मे जखन अपन विचार शक्तिक प्रयोग करबाक दुःसाहस करैत छी तऽ मानसिक चेतना काज नहि करैत अछि । मैथिली साहित्यक रचना एवं मान्यताक आधार हिन्दी सँ पुरान रहितहुँ एखन धरि उपेक्षिते अछि । भारत सरकारक योजना मे क्षेत्रीय भाषाक डपोरशंखी आश्वासनक शब्द सँ किछु मैथिल आशा धय जीबि रहला अछि ।

    वर्त्तमान राजनीतिक क्षेत्र मे मिथिलाक मान्यता संवेदनशील अछि । सम्प्रति मिथिलांचलक राजनीतिज्ञ अपना कें मैथिल कहबा मे संकोचक अनुभव करैत छथि । आ जे क्यो ताल-ठोंकि कें मिथिला एवं मैथिलीक अलग अस्तित्वक हेतु आवाज उठबैत छथि, हुनका राष्ट्रीय राजनीतिक दल सँ निष्कासित करबाक प्रयास कयल जाइत अछि । किछु सत्ता-लोलुप राजनीतिज्ञ कहैत छथि जे हमरा मैथिल बना, हमर क्षेत्र संकुचित करैत छी । हम राष्ट्रीय राजनीतिक दलक सदस्य व प्रतिनिधि छी । अपना कें मैथिली मंच पर उपस्थित कयला सँ हम क्षेत्रीय नेता भऽ जायब । आम धारणा मे एहि तरहक विषमताक उद्धाटन विस्मय थिक । वस्तुतः जे क्यो राष्ट्रीय दलक प्रतिनिधित्व करैत छथि, सर्वप्रथम हुनका क्षेत्रीयताक आधार भेटैत छनि आ ओहि आधार पर राष्ट्रीय स्तर निर्धारित कयल जाइत अछि । सच्चे, सदिखन राजनीति एवं राजनीतिक दल दुहूक मौलिक स्तर मे निरंतर गिरावट सँ मिथिलाक राजनीतिक स्थिति दयनीय भऽ रहल अछि ।उपर्यूक्त तथ्यक समालोचनक उपरांतहुँ निष्कर्षक खोज बनल अछि आ विचार- विनिमयक उत्कठ इच्छा रहितहुँ मूक बनय पड़ैत अछि । इत्यलम् । जय श्री हरि ।

     राजकुमार झा, राष्ट्रीय प्रवक्ता, मिथिला विकास परिषद, कोलकाता