कुशी अमावश्या पर मणिकांत झा केर इ रचना

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    कूश उखरि कय बाध बोन सँ घर-घर मे आइ आयल
    तैं भादव के अमावश्या कूशी अमावश्या कहायल
    हाथ सुपाड़ी खुरपी संगे मन सँ पढ़ी मंत्र
    कूश बिना नहि तर्पण पूजन आ ने कोनो तंत्र
    कूश ने कखनो अपवित्र हो पिंडक तर के छोड़ि
    ध्यान रहै जे कखनहुँ एकरा धार पोखरि नहि बोड़ि
    तील कूश लय सँउसे दुनियाँ लोक करै उत्सर्ग
    मणिकांतो नवके कूश लय दय रहला आइ अर्घ ।।