कोनो बिसरल गामक नाम दू पांति : राजकमल चौधरी

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मैथिली-हिन्दीक महान् लेखक राजकमल चौधरीकेँ हुनकेँ कविताक माध्यमसँ मिथिला मिरर श्रद्धांजलि अर्पित करैछ।

साँझक सिन्नुराह अन्हारमे डूबल गंगा नदीक घाटपर
ठाढ़ होइत छी,
नहि मोन पड़ैत अछि ओ छोट-छीन धार…
नाहपर झिझरी खेलायब
मलाह-गोंढ़िक गीत गायब बहकल स्वरमे
सिनेह-पोसल कुकूर जकाँ
घाट-बाट घुरिआयब नहि मोन पड़ैत अछि।
भगवती-थानक ओ गोल-गुम्बदवला मन्दिर,
आ, मन्दिरक स्वामिनी…
ओ शान्त-स्निग्ध मुखाकृति
ओ प्रार्थना-मन्त्र
ओ सभटा बिसरि गेल अछि, जकरा कारणेँ
हमरा हृदयमे कविता छल,
आ, हमर आँखिमे हिरण्यगर्भ इजोत!

साँझक सिन्नुराह अन्हारमे डूबल गंगानदीक घाटपर
ठाढ़ होयत छी,
तेँ लगैत अछि, शरीरसँ बहारक’ हमर ओ पूर्वजीवन
हमर ओ पूर्वजीवन
अठबज्जी स्टीमरपर चढ़िक’ जा रहल अछि
ओहि पार-
हमरा शरीरसँ विदा ल’!
ओहिपार, आ गंगाक एहि पारमे आब पचीस वर्ख
आ, दू जन्मान्तरक अन्तर अछि…

सुखा गेल होयत ओ चित्रलिखित सन छोट धार
ओ शान्त-स्निग्ध मुखाकृति
आत्मग्लानिसँ भ’ गेल होयत ज्वालामुखी…
ओहि गामक सभ लोक बरौनी-कारखानामे, अथवा
कलकत्ता-जमशेदपुर…
बचि गेल होयत केवल स्त्री-समाज
मनीआर्डरक प्रतीक्षा
आ, बीतल वयसक स्मृतिमे व्यस्त!