अनुभूति आ अभिव्यक्तिक कवि गोपाल जी झा गोपेश युगधर्म ओ आंचलिकताक रंग कें अनुलोम-विलोम मिश्रण सँ बोरि एकटा झुझुआन परंच आशुत्वक रस सँ डबडब काव्य संकलन सन १९६६ मे प्रस्तुत केलनि” गुम्म भेल ठाढ़ छी ” मात्र २३ गोट मुक्तक काव्यक ई संग्रह ठुट्ठा प्रकाशन सँ प्रकाशित अछि. एहि सँ पूर्व गोपेशजीक ” सोनदाइक चिट्ठी “बहुत लोकप्रिय भेल छलनि. एहि सँ उत्साहित भ’ कवि अपन नव रचना पाठक धरि परसबाक साहस केलनि .
अन्तर्मुख मे झाँपल बहिर्मुखी काव्य प्रतिभाक कविक ” गुम्म भ’ ठाढ़ अछि ” – एहि पर चिंतन करब आवश्यक छैक आ इएह दृष्टिकोणक कारणे ई छोट-छीन काव्य अपन प्रासंगिकताक अर्धशतक दिश प्रवेश क’ रहल आ एखन त’ चिरस्थायी मानल जाए. जाहि ठाम रचनाकारक लेखनी गुम्म भ’ जाइछ ओहि ठाम सँ जे शब्द -शब्द उदित होइछ ओकरे साहित्य-पांडित्य लोकनि समालोचना कहने छथि. एहि तथ्यक आधार पर प्रांजल प्रयास मे एहि काव्य मे कोनोविशेष चूकि नहि भेंटल , अर्थात ” देखन मे छोटन लगे घाव करे गंभीर ” एहि पातर पोथीक काव्य-प्राण कातर नहि शेषांशक गणना ततेक कम छैक जे आलोचक केँ ओकरा पुनि भाजकक रूप देबा मे सोचय परतनि .एकर सभ सँ पैघ कारण जे कवि उत्थान -पतनक आवर्तनक मध्य झाँपल प्रत्यावर्तन केँ बुझैत छथि. कवि कखनहुँ मौलिकताक दाबी नहि केलक आ ने संख्या -बल मे ओझराक’ अनाप सनाप रचना करैत गेल. जतबे लिखलक आत्मा सँ लिखलक आ परिणामक निर्णय स्वयं नहि केलक ओ सभ किछु पाठक पर छोड़ि देने अछि .
पहिलुक काव्य ” मिथिलाक प्रतिनिधि ” सरल छन्दात्मक कविता अछि जाहि मे चर-अचर आ जीव-अजीवक सौंदर्य बोधक संग संस्कृति मे माटिक सुवास सोहनगर लगैछ.
“जाहि ठाम पाओल जाइछ डोका सन सुन्नर आँखि
फ़रफ़रबए खग मात्र जाहि ठाम सूरतालहि सँ पाँखि….
जाहि ठामक थिक पैघ धरोहरि मिरजइ साठा पाग
कोकटिक धोती गाम -गाम मे रुचिगर पटुआ साग
जाहि देश मे गाओल जाइछ तिरहुति ओ समदौन
जाहि देशमे नव विवाहिता करबथि बहुत मनौन
एहि मे सरल पाठकक नजरि मे यथार्थ मुदा आलोचकक दृष्टि मे मिथिलामक गदगदीक परिचर्चा मात्र भेंटत किएक त’ जाहि मिथिलाक चर्च कएल जा रहल ओ सम्पूर्णताक परिचायक नहि,विशेष संबल आ आगाँक पाँतिक बोध करबैछ . एहि मे कवि अपन दायित्वक निर्वहन नहि क’ सकलथि , कवि परम्परावाद सँ बेसी बाझल लगैछ. पावनि-तिहार , आचार- विचार , विद्या-वैभव आ रहन -सहन मे सम्पूर्णता नहि देखाओल गेल. जौं कोजगराक संग-संग घड़ी पावनि आ वाचस्पति-मण्डनक संग-संग राजा सलहेस सन महामानवक चर्च सेहो कएल गेल रहितए त’ एहि पद्य कें मिथिलाक अनुगामी आ उत्कृष्ट ” संस्कृति-गान ” क संज्ञा सँ विभूषित करब अनुचित नहि होइतए किएक त’ यथार्थ कें सेहो अनुखन रूपेण प्रस्तुत कएल गेल ……
जाहि देश मे नैहर केर कौओ लगैत अछि नीक
होइत छथि नेनहि सँ लुडिगरि जाहि देश केर नारि
प्रियगर लगैछ जनमानस कें जिनकर डहकन गारि
एहि तरहक श्रव्य सम्बल गाथा क संग संग अपन समाजक विकृति कें सेहो आभा-गान जकाँ प्रस्तुत क’ ऊँच-नीचक अनुगामी बोधक दर्शन कविता मे आलोचक लेल किछु विशेष नहि छोरलक कविक इएह सत्य प्रहार काव्य-मंडली मे ओ स्थान नहि लिअ’ देलक जकर ई अधिकारी छल. तैयो कोनो परवाहि नहि कवि यथार्थ लिखबे कयलक ..
जाहि देश मे अहिपन सुन्नर ओ सीकीक चंगेरी
जाहि देश मे बटुकों होइछ बड़का गोट भंगेड़ी
“हम आ हमर युग” कविता युगधर्मिताक संग उपादेय कर्मक गाथा थिक जाहि ठाम शील सौंदर्यक कोनो सुमारी नहि, एहि काव्य मे सभ्यता , आस्था , चेतना आ संभावनाक विजय केर आश देखाओल गेल अछि ..
हम थिकहुँ घोर बुद्धिवादी
आस्था कें तर्कक कसौटी पर कसनिहार….
मुदा एहि तरहक कसौटीक एहि ठाम प्रयोजन आ उपादान स्पष्ट नहि भ’ सकल , कवि कें एहि छायावादी दर्शनक प्रयोजनक कारण स्पष्ट करबाक चाही छल.
सन १९३१ मे जनमल कवि जखन युवावस्था मे प्रवेश केलक ओहि काल हमर देश स्वतंत्रता मे प्रवेश क’ रहल छल. समाज मे व्याप्त भौतिक विषमता सम्यक बौद्धिक कवि कें
ग्राह्य नहि भ’ सकल आ आगाँ चलि ” एक-व्यक्तित्व दुइ चित्र ” लिखि देलक .अनुचित रूपेँ धनोपार्जन क’ अनर्गल ताम झामक जीवन जीब’बला व्यापारी पकौरीमल झुझुनियां
आ आदर्श व्यक्तित्वक लोक सेवक जीक जीवन शैलीक तुलना भलहिं वर्तमानकाल मे सामान्य गप्प मानल जाए परंच ताधरि ई कविता प्रासंगिक रहत जाधरि समाज पर अर्थनीतिक आड़ि मे भ्रष्टाचार भारी रहत.
“फ्रीलांसर” पद्य मे भारतीय आध्यात्मक स्वरूपक तुलना जीवन-शैली सँ करैत आस्थाक अनुचित रूप पर कविक वांछित प्रहार एहि पद्यकेँ विचारमूलक बना देलक ..
बाबा फ्रीलांसर छथि
तें नहि छन्हि मंदिर
आ’ नियमित रूपेँ
सइर भ’ कए भोगो
नहि लगइत छन्हि …
मात्र मूरति स्थापित क’ लेला मात्र सँ पूजा नहि , आस्थाक आडंबर पर नीक प्रहार कएल गेल .
सन्तुष्टीकरण मानवीय प्रवृति रहल अछि एहि सँ ऊपर भ’ कवि सोचलक तें उचित मोजर नहि भेंटल युगधर्मी कवि ” युगधर्म’ क बल्तोरि कें गहिया क’ उखाड़ि देलक .
हास्यक रूप मे विषयक अंतर कतेक द्वैध-जीबि कें कटाह लागल हेतनि , मुदा एहि मे एकटा नकारात्मक तत्व इहो जे गंभीर आ समाजक लेल व्याधि बनल चुनौतीपूर्ण विषय कें व्यंग्यात्मक रूप सँ बोरि क’ प्रदर्शित करबा मे एकर विचारमूलन कमजोर पड़ि गेल . एहि मे सत्व आ ताम रसक प्रयोग अपेक्षित छल
सभ सँ कठिन होईछ- अपन आ अपन वृतिक आलोचना , ताहू मे जौं ओहि वृतिक उद्देश्य भौतिकवादी नहि हुअए.
काव्य सृंजन जनकल्याणकारी उद्येश्यक होऊ आ बरु नहि होऊ ,मुदा! एतेक त’ निश्चित अछि जे एहि वृति सँ संधिस्थ मनुक्ख एकरा भौतिक रूपेँ नहि देखैछ ओहु मे मैथिली
साहित्यकार कविक स्थिति त’ पाठक सँ झाँपल नहि अछि .
अपने कवि रहितहुँ कविकाठीक आलोचना गोपेश जी खुलि क’ करैत छथि ..एहि आलोचना मे आशा अछि , निराशा अछि ,व्यथा अछि , संत्राश अछि आ कतिपय अनर्गल आत्मप्रशंसा पर प्रहार सेहो अछि ..लेखक सँ कविक तुलना करैत गोपेशजी लेखकक अन्तर्द्वन्द्व आ व्यथा दुनू मे संतुलन रखबाक प्रयास करैत छथि . हिनक अन्तर्मोनक इएह उचित उदगार आन कवि सँ हिनका अलग करैत छन्हि आ एहि ठाम त’ निश्चित रूपेँ हिनक काव्य मे तंत्रनाथ झा आ भुवनेश्वर सिंह भुवन श्रेणीक कवित्व झलकैत छन्हि ..
हे कविकोकिल
आजुक युग मे अहाँ जौं होइतहुँ
प्रयोगवादी रचना करितहुँ
अपनहि लिखतहुँ
अपनहि बुझितहुँ
रीन काढ़ि पोथी छपयबितहुँ
आलोचक कें देखितहि भगितहुँ….
लेखक सँ तुलनाक बाद कविक तुलना गीतकार, ठीकेदार, इंजीनियर , प्रोफेसर , डॉक्टर वकील आ अफसर सँ कएल गेल जे बड्ड रोचक लागल मुदा नेताक संग तुलना करैत काल कवि आशुत्वक पूर्ण प्रवाह मे उबडुब क’ रहल छथि……
मिरजइ दोपटा पाग छाड़ि
नेता केर सभटा ड्रेस बनिबतहुँ
पीड़ा पानक खिल्ली खइतहुँ
सदिखन पटना दिल्ली जइतहुँ
सभ विषय पर भाषण करितहुँ
बहुतो टा उदघाटन करितहुँ .
यथार्थवादी कवि “कल्पना “मे सेहो प्रवेश क’ जाएत अछि आ पुनि यथार्थक अनुभूति ओकरा सत्यक दिग्दर्शन करबैछ आ कवि फेर सँ यथार्थ मे” प्रवेश”
क’ जाइत अछि .कल्पना आ यथार्थ दुनू कविता भव्य विचार आ भावना सँ भरल अछि .
कविक आँजुर मे बिजुलिक दिमाग आ यंत्रक जाँत, भारतक माटि सँ सन आशु कविता सेहो छन्हि .
सोनदाइक नव चिट्ठी कविता सँ साहित्य केँ की भेटल एहि सँ बेसी महत्वपूर्ण अछि जे ” सोनदाइक चिट्ठी” क लोकप्रियता सँ प्रभावित भ’ कवि एहि काव्यक रचना केलनि.
ओहुना साहित्यक उद्देश्य शाश्वतक संग-संग कखनहुँ-कखनहुँ मनोरंजन सेहो हेबाक चाही मुदा सोनदाइक चिट्ठी मनोरंजनक संग-संग इतिहासक गर्त मे शिक्षाप्रद सेहो अछि जे चीनी आक्रमणक काल मे लिखल गेल छल .
उपलब्धि कविता कोनो ख़ास उद्देश्यक पूर्ति नहि करैत अछि , मनुक्खक अस्तित्व , टहाटही इजोरिया मे, शौर्य मे ककरो सँ उनैस नहि , प्रयोगवादी गमछा आदि मात्र पृष्ठ टा केँ बढ़बै लेल काज केलक एहि सभ मे विशेष किछु नहि .
“जवान केँ सम्बोधित गृहिणीक दू आखर ” भारत-पाकिस्तान युद्धकाल मे लिखल गेल प्रेरणादायी गद्य-गीत अछि . एहि मे एकटा ग्रामीण नारी अपन पति केँ राजधर्मक निर्वाह करबाक अद्भुत उत्साह दैत छथि…
तनने रहब बन्नुक बँटाएब नहि ध्यान
अमर रहत हमर सोहाग जौं चलिओ जैत अहाँक जान
माइओ दै छथि सप्पत तें रखबनि दूधक लाज
देश रक्षा सँ बढ़ि क’ दुनिओं मे नहि दोसर काज
प्रयोगबादी गमछा , हिलकोर बारह बरख बाद सासुर यात्रा, जय जवान जय किसान आदि आकर्षक प्रांजल पद्य अछि .
युगबोध युगधर्मी कविक तात्विक दर्शन सँ भरल जीवाक कला थिक जे कर्मधर्मिता केँ काव्यक धरातल पर उतारवाक नूतन प्रयोग मानल जा सकैछ .
एहिपद्य संकलनक सभ सँ आतुर होम’ बला विषय इएह जे कवि अंत मे गुम्म भ’ क’ ठाढ़ भ’ जाइत छथि. बहिर्मुखी प्रतिभाक धनी कविक ई गुमकी साहित्य केँ हिल्कोरि
देलक जे सभ ऋतु मे आशुत्व गुम्म भ’ रहल अछि . मैथिली साहित्यक लेल ई चिन्तनयुक्त प्रश्न अपन भविष्य पर प्रश्नचिन्ह ठाढ़ क’ देलक’ …..
ठुट्ठा पिपरक झोंझ मे
दबकल अछि नीलकंठ
कोइलाक सभ्यतामे
चारूकात लंठे लंठ .
कविक अनुसार सभ्यताक शिला पर इतिहासों घसा क’ विलुप्त भ’ जाइछ , मुदा गोपेशक ई काव्य चिरकालिक ज्योति प्रदान करत एहि विश्वाशक संग आशु-कवि गोपाल जी झा गोपेश कें शतशः पुष्पांजलि .
समालोचक : शिव कुमार झा टिल्लू