देशकालक दशाक नैसर्गिक वृतिचित्र : “हमहूँ कविता लीखि लैत छी ” 

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    कवित्व कोनो योजना बना क’ कयल गेल सर्जना नहि संग संग ई विद्वताक सहज प्रदर्शन सेहो नहि थिक. भाव तखने उपजैछ जखन आत्मामे औनाइत किछु आरोह अवरोह हियाक मादे स्वतः बहार भ’ जाय . तें काव्य सर्जनाक श्रृंगी उद्गार कें आशुत्वक संज्ञा देल गेल अछि. हिन्दीे साहित्यक महान कवि मैथिली शरण गुप्त काव्य कें पहिने गद्य रूपक संरचनाक हरियर सानी बना क’ ओकरा भुजैत छलथि , तखन फेर भाव आ शिल्पक सुवासित झोरकें ओहिमे बोरि ओकरा प्रांजल मुदा प्रवीण काव्यक रूप दैत छलाह , मुदा एहेन प्रतिभा अनचोकेमे भेंटैछ . सहज रूपेँ जौं विवेचन कयल जाय त’ कविता हिया नहि आत्माक प्रतिध्वनि थिक . विचारणीय जे ओ प्रतिध्वनिमे भावक केहेन रूप समाहित अछि . भावुकता कवित्वक पैघ निशान होइछ , जौं हियाक अर्चिस पारदर्शी नहि त’ सर्जनाकें पारभासक हयब सेहो संभव नहि . आधुनिक मैथिलीक समकालिक कवि सभमे सँ पारखी कवि आब जीवनक अंतिम धारमे प्रवेश क’ रहल छथि . वर्तमान काव्य प्रतिभा सभमे गति त’ छन्हि मुदा नियंत्रण नहि . कविता लेखनीक संग संग भावकें नियंत्रित कयने बिनु झुझुआन लगैछ . एहि तरहक समस्यासँ जूझैत मैथिलीकें कखनहुँ कखनहुँ अचकेमे किछु प्रांजल कवि भेंट जायत छन्हि जिनक सर्जनाक किछु मोल त’ अवश्य होइत अछि जे देशकालक खगताकेँ नीक जकाँ उघार करय. वयसक पूर्ण परिपक्व अवस्थामे अपन संग्रह सभकेँ प्रकाशित करबाक क’ मैथिलीक मानसपटल पर किछु नाओं अभरल अछि . एहि झुण्डमे साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ पुरस्कृत साहित्यकार श्री विवेकानंद ठाकुर , टैगोर सम्मान सँ सम्मानित मैथिली साहित्यकार श्री जगदीश प्रसाद मंडल आ साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कारसँ सम्मानित कैप्टन मायानाथ झा सम्मिलित छथि . एहि तरहक नवल समूह द्वारा मैथिलीकें एकटा आर नीक कवि भेंटलनि अछि – ई छथि दरिभङ्गाक चर्चित ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ गणपति मिश्र . हिनक पहिलुक काव्य संकलन “हमहूँ कविता लीखि लैत छी ” एहि वर्ख ( सन २०१५ ) मे पाठकक सोझाँ आयल अछि . हमहूँ कविता लीखि लैत छी हिनक पहिलुक कविता संग्रह त’ छन्हि , मुदा हिनका ” टटका कवि ” नहि मानल जाय किएक त’ कविता ई युवाकालहिसँ लिखैत छथि आ ई गुण हिनका विरासतमे भेंटल छन्हि संग संग दरिभङ्गाकेँ आत्मिक अभिवास आ मिथिला -मैथिलीक संग हिनक सिनेही उजास एहि सारगर्भित कविता संग्रह कें समकालीने टा नहि भविष्यक लेल चिरकालिक सेहो बना देत एना विश्वास कयल जा सकैछ .

    तीन खंडमे बाँटल एहि काव्य संकलनमे ५६ गोट कविता देल गेल अछि . गंभीर मूल्यांकन कयलाक बाद भाव पक्ष बहुत सोझ , स्पष्ट आ समकालिक बुझना जाइछ , ई एहि काव्यक सबल पक्ष सेहो थिक
    डॉ मिश्र देशकालक दशासँ ल’ क’ जीवनक प्रायः सकल आयामकेँ नीक जकाँ स्पर्श कयलनि अछि. कतहु महाकवि बैद्यनाथ मिश्र यात्रीक काव्य लोचक दर्शन त’ कतहु छन्द आ अलंकारक मर्मज्ञ सुरेन्द्र झा सुमनक अभिव्यंजना .कतहु सुकवि चन्द्रनाथ मिश्र अमरक अमरत्व त’ कतहु आशुकवि आरसी प्रसाद सिंहक आशुत्व अर्चना भरल अर्चनाक दर्शन सहज रूपेँ भेंटैछ . एकर पैघ कारण अछि जे कवि एकटा हृदय चिकित्सकक संगहि आपकता भरल हियाक मनुक्ख सेहो छथि . दैनन्दिनी आ अपन आत्मावरणसँ कम सँ कम कवि नहि बचि सकैछ . कहल गेल अछि मोनक उद्गारे गाबी गीत , घ’रमे खर्ची त’ सुति निश्चिन्त मुदा एहि तरहक भाव सरल लोकक लेल प्रासंगिक होइछ . जे दोसराक दुःख भरल जीवनक छाँहमे सेहो बहैत शोणितक धार देख लैत अछि ओकरा जीवनमे निज उद्गार एकल अर्थक भेनाइ कदापि संभव नहि . सुमन जी आ यात्री जीक चिकित्सक बनि गणपति एहि दुनू महाकवि कण कणमे भरल कवित्वक संग लीपित भ’ गेलथि . सेवाक फ’ल कहियो निष्फल नहि भ’ सकैछ , हिनक खट्कर्मक एकटा कर्म दोसरक भागी बनल , जे भविष्यक विचारमूलक इतिहास सेहो प्रमाणित होयत.
    एहि संकलनक निर्बल पक्ष अछि एकर शिल्पक अभिव्यंजना . कविक हियामे भावक विराट रूप व्याप्त अछि , ओ निरीहक दुःखसँ आतप्त अछि , ओहि भींजैत अश्रुकणक संग आत्मासँ कानल , अपना अर्थेँ पोछबाक बाट सेहो देखेलक मुदा ओकरा देखार करबाक क्रममे कतहु कतहु काव्यात्मक अभिव्यंजनकें झुझुआन सेहो क’ देलक . ओना रास ठाम आशुत्व कविक हियाक सहज विवर्त अछि मुदा कोनो -कोनो कवितामे व्यर्थ आशुत्व दर्शनक प्रयास ओहि काव्यकेँ खंडित क’ देलक जे काव्य सर्जनाक कमजोर पक्ष मानल जाइत अछि ओना ई सेहो ओतवे सत्यजे क्षणभरिमे अपन लेखनीसँ त्रिलोेकक तृणतृणक संग साक्षात्कार कर’ बला कविक उद्देश्य परखब सहज नहि, तें एहिठाम अभिव्यंजनाक शैलीसँ बेसी महत्त एकर भावकेँ देल जाय जे वर्तमान काव्यधाराक लेल अनुकरणीय अछि .
    एहि संग्रहक पहिलुक काव्य थिक ” हमहूँ कविता लीखि लैत छी “. कोनो काव्य संकलनकेर शीर्षक काव्यक अपन अलग महत्व होइत अछि , शीर्षक जौं कोनो कविताक केंद्र पर विचरण करय त’ ओहि मे समग्र रचनाक उद्देश्यक सार भेनाइ प्रासंगिक आ आलोचकक आश सेहो होइछ. एहि तरहेँ जौं देखल जाय त’ कवि काव्यक मौलिक तत्वकें स्पर्श क’ रहल छथि . एहि कवितामे कवि अपना कें कवि कहबाक ने त’ दाबी करैत छथि आ ने रास मोजरक आश रखने छथि . ओना मैथिलीमे कविक आत्मशानक प्रदर्शन करबाक बेमारी चर्चित रहल अछि . नाटककार सुधांशु शेखर चौधरी अपन प्रतिभाक मोजर अपने लेखनीक माध्यमसँ ” भफाइत चाहक जिनगी ” नाटकक आमुखमे कयने छथि . ओना हुनक प्रतिभा पर कोनो संदेह नहि , मुदा पाठकक मोजर सँ रचनाक महता बढ़ैछ . शीर्षक काव्यमे कवि साहित्यकारक सर्जनाक उद्देश्य पर तीक्ष्ण व्यंग केने छथि . जौं पुरस्कार प्राप्त करब मात्र साधनाक उद्देश्य बनि जाय त’ ओहि सर्जकक आ ओकर लिखल साहित्यक कोन महत्व ? . बहुत चिन्ताक विषय अछि जे मैथिलीमे बहुत रास रचनाकार साहित्यक सर्जना पुरस्कार मात्रकेँ ध्येय बना क’ क’ रहल छथि . कवि एहिसँ बहुत दुखित छथि …..
    पद्म पुरस्कारक सम्मोहन
    आसन ओ सरकारी भोजन
    तैयो यात्री विमुख भेल छल
    असली गाथा बूझि लैत छी
    हमहूँ कविता लीखि लैत छी …..
    एहि तरहेँ शीर्षक काव्यक इतिश्री भेल अछि , एकरा सरिपहुँ समकालिक मैथिलीक श्रेष्ठ शीर्षक काव्यक श्रेणीमे राखल जा सकैछ . एहि शीर्षक काव्यक विशेषता अछि जे पावसमे पोरगर भेल गेनाक डाँट जकाँ एहि एकमात्र मूलसँ बहुत रास नव कविताक जन्म भ’ सकैछ , मुदा एकर कमजोर पक्ष अछि छंदबद्ध करबाक क्रममे एकर छंदीय लोच कें असंतुलित क’ देल गेल अछि . जौं कवि अतुकांत रूपेँ एकरा आज़ाद काव्यक रूप देतथि , त’ भावक प्रदर्शन आर उच्चकोटिक होइते आ छंदहीनताक सेहो कोनो संभावना नहि छल.
    मैथिलीक साहित्य जगतकेर” शताधिक वर्खक अपन साहित्य यात्राक सारथी लोकनिक कर्मक गुणगान थिक. एहि तरहक काव्य मैथिली वा कोनो भाषा साहित्य मे लिखाइत रहल अछि .. अपन पुरखाक प्रति श्रद्धा सुमन अर्पण कर’ बला ई सहज काव्य थिक एहि मे किछु विशेष नव नहि भेंटल .अपनासँ छोटक लेल ” रेकार ” क प्रयोग कयल जाइत अछि. पैघमे ” माय ” जे सभसँ बेसी आदरणीय हुनको लेल गे, तों आदिक सम्बोधन ..स्नेहक सर्वोच्च स्थान राख’वाली लेल आपकताक अर्थे एहि तरहक सम्बोधन परम्परा जकाँ रहल अछि . ” कविता ” शीर्षक काव्यमे कवि कविता केँ ” तो ” कहि क’ सम्बोधित करैत मातृत्वक अनुभूति क’ रहल छथि . गुरु सभ सँ बेसी अदरक पात्र किएक त ‘ ओ भवबन्धन सँ मुक्तिक डोरि अर्थात ” प्रभु ” मे लीपित होयबाक मार्ग बुझबैत छथि तहिना एहि काव्यमे कवि अपन कविता सँ अनुपम सिनेह रखैत छथि किएक त’ हिनकामे सभ तरहक वंदनाक प्रेम ओ अर्चना कवितेक माध्यमसँ जगलनि…
    मातृ वंदना तोरे कारण
    देश जागरण तोरे कारण
    राष्ट्रधर्मकेर परिचय पाओल
    दशक गाथा तोरे कारण
    साहित्यक सर्जनाक मूल कारण ओकर ” उद्देश्य ” होयबाक चाही , कोनो कविक रचनाक शैली , अभिव्यंजना , भाव ओ शिल्पक संग जौं ओकरा रचना करबाक उद्देश्य स्पष्ट नहि भ’ सकय त’ ओ साहित्य अपन जन्मक संगहि यति अर्थात स्थायी विश्रांति धरि पहुँच जायत .ई साहित्यक अधोगतिक मूल कारण सेहो मानल जाइत रहल अछि. कविता शीर्षक काव्य कवि गणपतिक सर्जनाक एकटा आरसी सेहो मानल जाय. हिनक रचनाक मूल उद्देेश्य वंदना अर्चनासँ बेसी देशकालक दशा पर उपबंध आ ओकरा उच्छिष्ट नहि उत्कृष्ट बनयबाक प्रयासक संग संग जीवनक विविध आयाममे सत्य असत्य ऊंचनीच के चिन्हब सेहो छन्हि.
    “कवि ! कलम उठाउ” कविताक माध्यम सँ कवि चलि आबि रहल काव्य सर्जनाक भाव आ शैलीसँ क्षुब्ध भ’ क’ नवल लेखनीक कर्ता धर्ता सभ सँ नूतन आशाक याचना नहि अर्चना नहि शंखनाद करैत अछि ..एहि संग्रहक विचारमूलक काव्य सभक मध्य एकरो नीक श्रेणीमे राखल जा सकैछ .
    कलम जखन निर्भीक होइ छै
    शांत मेघ तखने गरजै छै
    सागर लहरि सेहो उछलै छै
    क्रांतिबीज तखने उपजै छै
    साफ साफ सभ सोझ ,लिखू यौ
    छल कपट सँ बचाउ
    कवि ! कलम उठाउ…..
    कविक काव्यान्जलिमे विविध धारक ज’ल छन्हि ओहिमे अलग अलग बूनकेँ विलग क’ ओकर अपन महिमामंडन करब कतिपय दुष्कर कार्य बुझना जाइछ . ओना त’ कोनो काव्य संग्रहक अलग अलग काव्यक अपन निजभाव होइत छैक मुदा जौं रचनाकारक उद्देश्य आ ओकर अपन कर्मक प्रवृति सम्यक हुअए त’ बहुरंगी कविता रहितो कहना ने कहना एक दोसरासँ सम्पर्किते देखाइछ . कविक रचना आ पाना जीवनक गुणधर्मिता सम्यक छन्हि . ई देशकालक भ्रष्टाचारसँ ल’ क’ लोेकक रंगबिरहा आचरणक संग संग निर्बलक अधीर जीवनसँ अपना मोने आक्रांत छथि. कविता सभमे सेहो इएह कहैत छथि , मुदा क्षुब्ध सेहो छथि किएक त’ पाठक कवितासँ रास रूचि नहि रखैत छथि . तें कवि ” कविता आब कम्मे लिखाइत अछि ” क माध्यमसँ कहैत छथि :
    यात्रीक उदास चूल्हि
    नजरि नहि आएत ककरो ,
    कलमे आइ जखन सबसँ पैघ खाधुर अछि ,
    इनाम लेल विकल रचनाकार,
    मूर्खक आगाँ मे रोज सिसिआइत अछि
    कविता आब कम्मे लिखाइत अछि !
    वर्तमान मैथिलीक कवि/ कवयित्रीक सर्जनाक कारण ओ ओकर गुणधर्मिता पर व्यंग्यात्मक वाण बहुत किछु कहि रहल अछि .
    कवि स्वयं यात्री आ सुमनसँ बहुत निकट रहल छथि , तें हुनक जीवन केँ आत्मसात कम सँ कम अपन काव्यमे त’ अवश्य कयने छथि . ” कवि यात्री -नागार्जुन मरि गेल” आ ” अपन सुमन केँ नहि बिसरी हम ” कवितामे मात्र अर्चना नहि मिथिलाक माटिमे सानल करेजक गर्द केँ आत्मसात करबाक दिशा निर्देश सेहो अछि .
    ” सीता ” कवितामे सुकवि जानकी केँ नवल रूपेँ परिलक्षित क’ एकटा नव तरहक विमर्शक उन्नायक बनल छथि :
    अकालक प्रलयकाल मे
    विदेहराज जनक नहि
    हलधर सीरध्वज हरक सिर सँ
    उत्पन्न हे सीते !
    अहाँ कृषक कन्या छी
    अहाँक स्मरण एहिक्षेत्रक धर्म अछि
    खेतियेटा मिथिलाक एकमात्र कर्म अछि
    “गंगा अहाँ सुखाए रहल छी”– सोझसाझ भावकेँ स्पर्श त’ करैछ मुदा एकर अभिव्यंजनमे लगैछ जेना कोनो क्रांतिवीर लेखकक लेखनी सँ निक्सल एकटा साधारण चलचित्र चलि रहल हुअए. रोज उगै छथि सुरुज देवता मे नीक अधलाहक प्रति समदर्शी आँखिक लेल नव प्रेरणाक आकृति बनाओल गेल अछि एहि कविताकेँ सेहो एकटा आदर्श काव्यक श्रेणीमे राखल जा सकैछ :
    धोखेबाज नेता आ भ्रष्ट अधिकारीक
    मोन आ माँथे मे
    नहि पहुँचल अहाँक प्रकाश
    अन्हारे रहि गेल ओकर ज्ञान
    तैं किछु नहि सुधरत
    रोज उगैत रहि जाएब
    हे सुरुज देवता .
    ” हे सूर्य ” शीर्षक काव्य कविक निज जीवन सँ ल’ क’ हिनक आत्मा मे औनाइत दयापूर्ण गतिविधिक पूर्ण छविचित्र बुझना जाइछ जे अचके मे देखार जकाँ बुझना गेल . आशाक सहचर गणपतिक मोन निराश नहि छन्हि ओहिठाम त’ सहचरी आशा वास क’ रहल छथिन्ह . तूलिकाक तात अपना केँ कलाकार सेहो मानैत छथि . स्वाभाविक छैक कवि अपनामे पूर्ण कलाकार होइछ .
    गरीब देशक एकटा गरीब राज्यक गरीब नगरीमे वास कर’ बला चिकित्सक कविकेँ नित्य गरीब रोगी सभसँ भेंट होइत हेतनि तें गरीबक असाध्य पीड़ासँ हिनक साक्षात्कार भेनाइ कोनो असहज नहि . गरीब अपन कर्म आ भाग्यक देल गरीबीसँ बेसी दोसराक लादल गरीबीक त’र मे दबि क’ मरैत अछि .
    ” गरीबी रेखा ” कविता सर अलेक्जेंडर पोप सन कविक व्यंग्यवाण जकाँ प्रतीत होइछ :
    आय प्रमाणक सभ दिन भीड़
    जे पाबथि से बड़का वीर
    जक्कर घर पक्काक गाम मे
    तकरे लेल इंदिरा आवास
    मुँहगरहे केँ देखै छै सभ
    निर्धन केँ भेंटै नहि घास
    जाँचक आर्डर सभ दिन होइछ
    दंड आइ तक भेटल ने ककरो
    आधा पेट भरल नहि जक्कर
    सोचि रहल दिन फीरत हमरो….
    ” की हम सब सरिपहुँ स्वाधीन ” कविता देशकालक वर्तमान अधोगति व्यवस्थाक अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट जकाँ अछि .
    “अपन आँखि सँ की देखैत छी” कविता मे पाठककक लेल देखबाक बहुत रास तादाम्य समाहित अछि . हिनक एही कविताक भाव आ शिल्प दुनू बहुत पोरगर छन्हि आ अमर जी सन कविक शैलीक स्मरण सेहो करबैछ.
    एतेक निर्बल लोकाचारक मध्य दाबल रहलाक बादो कवि ” ख’गल” केँ जीवैत रहबाक लेल प्रेरित क’ रहल छथि . ” भगवान भरोसे जीवैत रहू” मे नोर आ दुर्भाग्यक बोरसँ बोरल व्यंग्य समाहित छन्हि :
    जीवन फूल संग काँटो छैक
    पैर देखि देखि रखैत रहू
    विकासक नाम पर लूट मचल छै
    कमजोर सड़क पर चलैत रहू
    अस्पताल मे डाक्टर नहि छथि
    रोगी छी कनैत रहू ……….
    गंभीर विषय -विषय सँ भरल काव्य मोनमे प्रेमक विषय सेहो छन्हि . सरिपहुँ सिनेह बिनु सब सुन्न , तें विषयनिष्ठ लेखनीक कवि रीति प्रीति सँ बचि नहि सकलाह . ” बूझि गेल छी ” शीर्षक काव्यक मादे हिनक सिनेहक गंभीर प्रदर्शन देख’ मे आयल :
    नजरि देखलक अहाँ केँ
    धड़कन की अछि बूझि गेल छी
    आँखिक परिचय जखने भेंटल
    कमल फूल केँ बूझि गेल छी ..
    जीवनक दशा ओ दिशा आक्रान्त भ’ गेल अछि , तें सभ एक दोसरसँ त्रस्त छथि . जातिवादी सम्प्रदाय केँ गरियाबैत छथि आ सम्प्रदायवादी जाति- पजातिक विमर्श तकैत छथि . एहि सभसँ पुनि गुलामीक ख़तरा बढ़ि रहल अछि . ई सोनचिड़ैया भारतवर्षक दशा देखि हिन्दीक कोनो कवि एहि सुकविक जकाँ पहिनहि कहने छथि :
    एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिश्तां करने को
    हर डाल पर उल्लू बैठा हो अंजामें गुलिश्तां क्या होगीं
    निष्कर्षतः किछु खगता रहलाक बादो एहि संकलनकेँ गंभीर आ विचारमूलक काव्य संग्रहक श्रेणी मे राखल जा सकैछ आ एकर ई अधिकारी सेहो अछि
    शेष अस्तु !

    पोथीक परिचय :
    काव्य संकलनक नाओं : हमहूँ कविता लीखि लैत छी
    रचनाकार : डॉ गणपति मिश्र
    प्रकाशक : तूलिका प्रकाशन , साहित्य मंदिर लाल बाग़ दरभंगा
    प्रकाशन वर्ष : सन २०१५
    मूल्य : १५०.००

    (समालोचना )
    शिव कुमार झा टिल्लू