दिल्ली-मिथिला मिररः गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः, गुरू साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरूवै नमः शिष्य आ गुरूक बीच ओहने संबंध अछि जेहन संबंध जिनगी आ स्वांसक बीच होइत छैक। मनुखक जखन धरती पर आगमन होइत अछि तखन सं आ अंतिम सांस लेवाकाल धरि इंसान हर क्षण हर पल गुरू सं साक्षात्कार करैत अछि, चाहे ओकर प्रारूप जे कोनो हो, माध्यम अनेक भय सकैत अछि मुदा ओकर प्रतिफल एक मात्र होइत छैक, सत्कर्मक बाट पर चलवाक प्रेरणा देनाई। व्यक्तिक पहिल पाठशाला आ गुरूकुल ओकर घर होइत अछि आ पहिल गुरूजनक रूपमे माता-पिता होइत छथि तथापि, जिनगीमे गुरूक ऋण कहियो नहि चुकाओल जा सकैत अछि आ नहि ओहि अनमोल संबंध कें शब्दक माध्यम सं लिखल वा कि व्यक्त कैल जा सकैत अछि। बिन गुरूक ज्ञान कहियो नहि भेटल आ नहि भेट सकैत अछि। सनातन धर्म आ अखंड भारत देश सहित मिथिला में गुरू-शिष्यक जे परंपरा अछि ओ आई सं नहि अपितु आदि काल सं आबि रहल अछि।
चाहे वेद व्यास’क विदेह जनक जी सं ज्ञान लेवाक संदर्भ हो वा मृत शैय्या पर पड़ल रावण सं रामचंद्र जीक कहला पर लक्ष्मण जी’क शिष्य बनि ज्ञान लेवाक बात। गुरू कियो भय सकैत छथि चाहे ओहि व्यक्ति सं अहांक शत्रुता कियैक नहि हो। आदिकाल सं हमरा समाज में गुरूकुल में रही पठन-पाठन करवाक जे प्रक्रिया चलैत आबि रहल छल ओहि में दिनानुदिन हा्रस देखल जा रहल अछि। समयक संग शिक्षाक प्रारूप में भय रहल बदलाव आ ओहिक बाद शिक्षाक बाजारीकरण सं नहि सिर्फ बच्चाक नेनपन समाप्त भय रहल अछि अपितु चिरकाल सं आबि रहल ओहि अनमोल संबंधकें सेहो अंतिम सांस लेवाक लेल मजबूर कैल जा रहल अछि। समय एहन आबि गेल छैक जाहि में अभिभावक कें ज्ञान सं बेसी बच्चाक नंबर पर ध्यान रहैत छन्हि आ बच्चाक बुद्धिक तुलना ओकर व्यक्तित्व, ओकर ज्ञान सं नहि अपितु ओकर प्राप्तांक सं होइत अछि।
स्थिति एहन भय गेल अछि कि बच्चाक वजन सं बेसी ओकरा पीठ पर लादल बैग में किताब भरि देल जाईत छैक, मुदा ई देखनिहार कियो नहि अछि कि पीठ पर गद्हा जेना किताब लादि देला मात्र सं ज्ञान आ संस्कार भेट जेतैक? बाजा़रवादी युग आ शिक्षाक ठेकेदार लोकनि के अहि बात सं कोनो फर्क नहि पड़ैत छन्हि कोना गुरू-शिष्यक बीच संवाद स्थापित होई, कोना आजुक नेन्ना आ काल्हिक भविष्य संस्कारी बनि समाज आ खास कय अपना आप कें स्वस्थ्य समाजक हिस्सा बना सकै। अहि बातक लेल ओ अबोध बच्चा दोखी नहि अपितु दोखी ओ माय, बाप छथि जे बच्चा कें बचपन छीन ओकरा रोबोट आ कहि जे मशीन बनेवाक लेल तुलल रहैत छथि। प्रतिस्पर्धाक अहि दौर में ओहि समस्त अभिभावक कें अहि बातक बोध हेवाक चाहि जे ओ जाहि तरहें बच्चाक लालन-पालन करतथि ओकर प्रतिफल हुनके वृद्धावस्था मे भेटतनि।
अहि बात पर समाजक हर व्यक्ति कें सोचव आवश्यक छन्हि जे कोन तरहें अपना बच्चा कें गुरू-शिष्यक परंपराक ज्ञान दय ओकरा में नित नव संस्कारक सृजन करैथ। शिक्षक रूपी ओहि समस्त पर्मात्मा कें मिथिला मिरर’क दिस सं कोट सह नमन। आ आग्रह जे अपने सब दिन अहिना समाजक सृजन में अपन भागीदारीक निर्वहन करैत रही।