मजदूर दिवस पर मनीष झा बौआभाई द्वारा रचित इ कविता

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    मजदूर लोकनिकें समर्पित हमर ई रचना
    नहि फूसि बजै छी
    जे बाजै छी से सत्ते हम
    नहि चोरि करै छी,
    नहि डाका दै छी
    छी मानव अलबत्ते हम

    आशक महल बनौने जाइ छी
    ई नहि बूझी जे मजदूर छी
    बड़का सपना बड़के पुरबैइयै
    हम त’ परम मजबूर छी
    सीमित दुनिया मोर मजदूरक
    तँए रही सतत एकमत्ते हम
    छी मानव अलबत्ते हम

    रौदक धाह वा जारक कनकन्नी
    जोन-बोइनहारक जीवन जीबी
    थाकल-हारल घरमे आबिक’
    साँझक’ भरि छाक तारी पीबी
    ठेही मिटब’ लेल करू उपाय की
    तँए लगेने तेहने लत्ते हम
    छी मानव अलबत्ते हम

    दू सेर बोइनक खातिर रोजे
    मेहनैतकें घाम चुबाबी हम
    कोंढ़ तोड़िक’ काज करै छी
    पाथर पर दूभि जनमाबी हम
    दिन कहुनाक’ काटि रहल छी
    बुझू भरि रहल छी खत्ते हम
    छी मानव अलबत्ते हम

    मृग-तृष्णा दिस भागि रहल छी
    कहियो नें कहियो तँ’ दिन घुमतै
    हम नहि पढ़लहुँ तँ’ की भेलै
    कम-स-कम धिया-पुता तँ’ पढ़तै
    पोथी-पिलसिम तँ’ जुमा देबै
    मुदा करम बनेबै कत्ते हम
    छी मानव अलबत्ते हम

    हमरा कोना नञि हएत मनोरथ
    जे हमहूँ हाकिमकें बाप कहाबी
    गम-गम करितए हमरो घर-आँगन
    हमहूँ एहेन गाछ लगाबी
    खैट रहल छी मिठ फल पाबैलए
    खैट सकै छी जत्ते हम
    छी मानव अलबत्ते हम